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[ ८३ ] क्षायक ज्ञान दर्शन धनी रे, चरण वीर्य के मुप। ... द्रव्य गुण पर्याय स्वभुक्ता, ज्ञायक मकल स्वरूप हो। सो० ॥ काल अंनत पुद्गल अनन्ता, परिवर्तन संसार । स्थिरता शांति नहीं मिली रे, शांति प्रभु अवतार हो । सो०॥ हूँ गरजी अरजी करूं प्रभु, तू है दीन दयाल । सुन्दरज्ञान दो 'ज्ञान' कोरे करुणा सिन्धु कृपाल हो ॥ सो० ॥
(१७) श्री कुंथुजिन स्तवन ...
(१) मनहुँ किम ही न बाजे, हो कुंथुजिन ! मनहूं किमही न बाजे जिम जिम जतन करीने राखं, तिम तिम अलगुं भाजे, हो ।कुं०॥१॥ रजनी वासर वस्ती उज्जड, गयण पायाले जाय; साप खाय ने मुखड़े थोथं, एह उखाणो न्याय; हो कुं० ॥२॥ मुगतितणा अभिलाषी तपिया, ज्ञान ने ध्यान वैरागे; वैरीडु कांइ एहवं चिंते, नांखे अवले पासे; हो कुं० ॥३॥ आगम आगम धरने हाथे, नावे किण विध आंकुं; किंहा कणे जो हठ करी हटकुं तो, व्यालतणी परे वाकु, हो कु० ॥४॥ जो ठग कहुं तो ठगतो न देखु, शाहुकार पण नाहीं; सर्व माहे न सहुथी अलगुं, ए अचरिज मनमांही, हो कुं० ॥५॥ जे जे कहुँ ते कान न घारे, आप मते रहे काली; सुर नर पडित जन समजावे, समजे न मारी साली हो कुं० ॥६॥