Book Title: Prachin Stavan Jyoti
Author(s): Divya Darshan Prakashan
Publisher: Divya Darshan Prakashan
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नहि छे, पत्यक्ष दरिशन दीजे धुआडे वीजुनहि साहिब. पेट पडयां पतिजे ॥सेवक०॥४॥ श्री शंखेश्वर मंडन साहिब, विनतडी अवधारो, कहे जिन हर्ष मया करी मुजने, भवसायरथी तारो सेवक० ॥५॥
(२) रातां जेवां फूलडां ने, शामल जेवो रंग; आज तारी आंगीनो काइ रुडो बन्यो रंग, प्यारा पासजी हो लाल, दीनदयाल मुने नयणे 'निहाल ॥१॥ जोगीवाडे जागतो ने, मातो धिंगडमल्ल शामलो सोहामणो कांइ, जीत्या आठे मल्ल प्यारा० ॥२। तुछे मारो साहिबो ने, है छुतारो दास, आशा पूरो दासनी कांइ, सांभली अरदास प्यारा ॥३॥ देव सघला दीठा तेमां, अक तु अवल; लाखेणु छे लटकु ताहरु, देखी रीझे दिल्ल प्यारा० ॥॥ कोइ नमे पोरने ने कोइ नमे राम, उदयरत्न कहे प्रभु माहरे तुमशुकाम ॥५॥
(३) अब मोहे असी आय बनी, श्री शंखेश्वर पास जिनेसर मेरे तु एक धनी ।।अब०॥१॥ तुम बिन कोउ चित्त न सुहावे, आवे कोडी गुनी, मेरो मन तुज उपर रसियो, अलि जिम कमल भनी ॥अब० ॥२।। तुम नामे सवि संकट चूरे, नागराज घरनी; नाम जपुनिशि वासर तेरो, ए शुभ मुज करनी ॥अब० ॥३॥ कोपानल उपजावत दुर्जन, मथन वचन अरनो; नाम जपु जलधार तिहा तुज, धारु दुःख हरनी ॥अब० ॥४॥ मिथ्यामति बहु जन हे जगमें, पद न धरत धरनी; उनको अब तुज भक्ति प्रभावे, भय नहि अक कनी ॥अब० ॥५॥ सज्जननयन सुधारस-अंजन, दुरजन रवि भरनी, तुज मूरति निरखे सो पावे, सुख जस लील धनी ॥ अब० ॥ ६ ॥

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