Book Title: Prachin Stavan Jyoti
Author(s): Divya Darshan Prakashan
Publisher: Divya Darshan Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 138
________________ ११७ ] नावरिया मेरा कोन उतार बेड़ा पार ।। यह संसार समुद्र गंभीरा, कैसे उतरूंगा पार ॥नावरिया० रागद्वेष दोय नदियां बहत है, मँवर पड़ गतिचार० नावरिय ।। ऋषभदास को दरसन चहिये, बीनतडी अवधार ॥ नावरिया० है जगतमें नाम ये, रोशन तेरा प्रभु। तारते उसको सदा, जो ले शरण तेग प्रभु ॥१॥ लाख चौरासी ने घेरा, कर्म ने मारा मुझे । ले बचा अब तो सहारा, हैं मुझे तेरा प्रभु ॥२॥ सैकड़ों को तारते हो, मेहर की करके नजर । क्यों नहीं तारो मुझे क्या गुनाह मेरा प्रभु ॥३॥ हाल जो तन का हुवा है, आप बिन किससे कहूं । मोह राजा ने मुझे, चारों तरफ घेरा प्रभु ॥४॥ आपसे हरदम तिलक की, ये ही तो अरदास है। आपके चरणों में मेरा, रहे सदा डेरा प्रभु ॥५॥ अजब जोत मेरे प्रभु की, तुम देखो भाई। कोटि सूरज मिल एकट कीजे, होड न होये मेरे प्रभु की ॥तुम। झिगमिग जोत झिलामल झलके, काया नील वरण की ॥तुम।। हीर करे प्रभु पार्श्व शंखेश्वर, आवा पूरो मेरे मनको ॥तुम।।

Loading...

Page Navigation
1 ... 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166