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(१२) मुख बोल जरा यह कह दे खरा,
तुं ओर नहीं में ओर नहीं तु नाथ मेरा में हुं जान तेरी,
मुझे क्यु विसराई जान मेरी, अब करम कटा ओर भरम फटा,
तु ओर नहीं में ओर नहीं ।। मुख० ॥१॥ तु हे इश मेरा में हु दास तेरा,
मुझे क्यु न करो अब नाथ खरा, जब कुमति टरे ओर सुमति वरे,
तु ओर नहीं में ओर नहीं ॥मुख० ॥२॥ तु हे पास जरा में है पासपरा,
मुझे क्यु ने छोडावो पास टरा, जब राग कटे ओर देष मिटे, .
तूं ओर नहीं में ओर नहीं। मुख० ॥३॥ तु हे अचरवरा में है चलनचरा,
मुझे क्युन बनाओ आपसरा, जब होश जरे ओर सांग टरे,
तुं ओर नहीं में ओर नहीं ॥ मुख० ॥४॥ तुः हे भूपवरा शंखेश खरा,
में तो आतमराम आनंद भरा, तुम दरस करी सब भ्रान्ति हरी,
तुओर नहीं में ओर नहीं । मुख० ॥ ५॥