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[ ११३ ] कबजे आव्या ते नहीं मुकु जिहां लगे तुम सम थावो रे जो तुम ध्यान विना शिव लहीये तो ते दाव बतावो रे,
आज० ॥ ३॥ महागोप ने महानिर्यामक इण परे बिरुद धराओ रे तो शुं आश्रितने उध्धरतां बह बह शं कहावो रे
आज० ॥४॥ ज्ञान विमल गुरुनो निधि महिमा मंगल अही वधावो रे अचल अभेदपणे अवलंबी अहोनिश अही दिल ध्यावो रे
आज० ॥५॥
(२) प्यारो लागे मने सारो लागे दर्शनमां गंभीरोजी प्यारो लागे सौनाकरी झारीयां ने मांही भर्या पाणी न्हवण करावु मेरे जिनजी
के अंग केशर चंदन भर्या रे कचोला पुजा करूं मेरे प्रभुजी के अंग दर्शन ॥२॥ धूप ध्यान घटा अनहद है लली लली शीश नमावत है दर्शन० ॥ ३ ॥ फूल तुलाबकी आंगी बनी है. हार पहेरावु मेरे जिनजी के अंग दर्शन० ॥ ४ ॥ आनंदघन प्रभु चलत पथमें ज्योति में ज्योत मीलावत है दर्शन ॥५॥