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१.t मोह गये जो तारशो, तिण वेला हो कहां तुम उपगार ! सुखवेला सज्जन घणां, दुःखवेला हो विरला संसार ॥५॥ पण तुम दरिशण योगयी, थयो हृदये हो अनुभव परकाश अनुभव अभ्यासी करे, दुःखदायी हो सहु कर्म निराशा ॥६॥ कर्म कलंक निवारीने, निज रूपे हो रमे रमता राम; लहत अपूरव भावथी, इण रीते हो तुम पद विशराम ॥७॥ त्रिकरण-योगे विनवं, सुखदायी हो शिवादेवीना नंद ! चिदानंद मनमें सदा, तुमे आयी हो प्रभु ! नाणदिणंद ॥१॥
में आजे दरिसण पाया, श्री नेमिनाथ जिनराया; प्रभु शिवादेवीना जाया, प्रभु समुद्रविजय कुल आया, कर्मों के फंद छोडाया, ब्रह्मचारी नाम धराया, जीने तोडी जगत की माया ।।जीने०॥ में॥१॥ रेवतगिरि मंडनराया; कल्याणक तीन सोहाया, दीक्षा केवल शिवराया मगतारक बिरूद धराया, तुम बेठे ध्यान लगाया ॥ तुम ॥ में ॥२॥ अब सुनो त्रिभुवन-राया, में कर्मों के वश आया, हुँ चतुर्गति भटकाया मे दूःख अनंता पाया, ते गोनती नाही गणाया ॥ ते गीन० ॥ में ॥३॥ में गर्भावास में आया, ऊंधे मस्तक लटकाया, आहार सरस विरस भुकताया, एम अशुभ करम फल पाया, ईण दुःख से नाहीं मुकाया ईण०॥ में० ॥४॥ नरभव चिंतामणि पाया, तब चार चोर मील आया, मुजे चौटेमें लूट खाया, अब सार करो जिनराया, किस कारण देर लगाया ॥ किस ।। में० ५॥ जिणे अंतरगत में लाया, प्रभु नेमि निरंजन ध्याया, दुःख संकट विधन हटाया, ते परमानंद पद