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[ ८८ ] राजगृही मां चार कल्याणक मुक्ति समेत गिरि जाय, शिव कमला पद तिहां लह्योजी, अनन्त सिघनो ठाम ॥मुनि०२॥ आगे भक्त घना हुआ रे, अब प्रभु मोहे तार, तारक नाम घरायो स्वामी, अफ्ना विरूद्ध सम्भाल ॥मुनि०३॥ काल अनंता भव भव भटक्यो अब मैं शरणे आये,
और देव को मैं नहीं ध्याऊ वीतराग मन भाये ॥ मुनि ० ४ ॥ कर जोड़ी मोती बल्लभ को अर्ज सुनो जिनराज, चैत्र कृष्ण शनियुत सातम, गायो प्रभु गुण ग्राम ।। मुनि ० ॥ विक्रम सम्वत् एक नवेनव उपरी त्रणको अंक, दृढ़ आशा है थारी, संकट देज्यो टाल ॥ मुनि ० ६ ॥
( ३ ) (दुःख दोहग दूरे टल्या रे ए देशी)
श्री मुनिव्रत साहिबा रे, तुज विण अवर को देव; न नरे दीठो नवि गमे रे, तो किम करिये सेव
जिनेसर ! भुजने तुज आधार नाम तुमार सांभरे रे, सासमांही सो वार जिनेसर ! ० ॥ २॥ नीरख्या सुर नजरे घणा रे, तेहशु न मिले तार; तारोतार मिल्या पखे रे, कहो किम वाधे प्यार जिनेसर!।।३।। अंतर मन मिलिया विना रे, न चढे प्रीति प्रमाण; पाया विण किम स्थिर रहे रे, मोटा घर मंडाण जिनेसर! ०॥३॥