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हवे
तु जाने आदयी चेरी
असो जिनराज तू दाता, हवे क्युं ढील है ? त्राता ॥ संभव ॥५॥ जे जाचे देव है जेने, कहुं नाम ते केने, अवस्था जगत में मेरी ॥ संभव ॥ ६ ॥ कल्पतरु जानके रांच्चो, न निष्फल होत अब जायो, करो निज रूप सानीको नथाउ कीर जगफीको || संभव० ॥ ७ ॥ जो भक्ति नाथ की करता अक्षय भंडारकु भरता, आनंद मनमाहि अति भारो, निहारा दासकु तारो || संभव ॥ ८ ॥
(४) श्री अभिनन्दन जीन स्तवन
अभिनंदन जिन दरिसण तरसीये, दरिसण दुर्लभ देवः मतमत भेदे रे जो जई पूछीयें, सहुथापे अहमेव || अभि० ||१|| सामान्ये करी दरिसण दोहिल, निर्णय सकल विशेष
मदमां धेर्यो रे अंधो केमकरे, रविशशि रूप विलेख || अभिलाशा हेतु विवादे होचित घरी जोईये, अति दुर्गम नयवाद आगम वादे हो गुरुगम को नहीं ए सबलो विखवाद || अभि० || ३ || घाती डुंगर आडा अति घणा, तुज दरिसण जगनाथ घीठाई करी मारग संचरू, सेंगु कोई न साथ || अभि० ||४|| दरिसण दरिसण रटतो जो फिरूँ, तोरण रोझ समान जेहने पिपासा हो अमृत पाननी, किम भांजे विषपान || अभि० ||५|| तरस न आने हो मरण जीवनतणो सीके जो दरिसण काज
दरिसण दुर्लभ सुलभ कृयाथकी आनंद घन महाराज || अभि० || ६ ||