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प्रभुजी पंच तणी परशंसा के; रुडी
मोहन महेर करीने दरिशन,
मुजने
थापजो रे लो;
आपजो रे लो ||३||
हवे मुने तारजो रे लो तेहने वारजो रे लो ||४||
तारक तुम पालव में झाल्यी के; कुतरी कुमति थई छे केडे के, सुन्दरी सुमति सोहागण सारी के; प्यारी छे घणी रे लो; तातजी ते विण जीवे चउद, भुवन कयुँ आंगणु रे लो ॥५॥
लखगुण लखमणा राणीना जाया के, मुजमन आवजो रे लो; अनुपम अनुभव अमृतं मीठो के, सुखडी लावजो रे लो || ६ || दीपती दोढसो धनुष प्रमाण के, प्रभुजीनी देहडी रे लो; देवनी दश पूरव लख मान के; आयुष्य वेलंडी रे लो ॥७॥ निर्गुण निरागी पण हुं रागी के मनमांहे रहयो रे लो; शुभगुरु सुमति विजय सुपसाय के रामे सुख लह्यो रे लो ॥८॥
( ३ )
चन्दा प्रभुजी से ध्यान रे, मोरी लागी लगनवा
लागी लगनवा छोडी न छुटे; जब लग घट में प्राण र े || मो० ॥ १ ॥ क्रोध मान माया लोभ छोड के; भजले श्री भगवान रे || मो० ॥२॥ दानशील तव भावना भावो; जैन धरम प्रतिपाल रे || मो० ॥३॥ ||मो० ||४||
हाथ जोड़ कर विनती करत है; वन्दत सेठ खुसाल र