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[ ६३ ] (८) श्री चन्द्रप्रभु स्वामी का स्तवन
(१) चाह लगी जिन चन्द्रप्रभु की, मुज मन सुमति ज्यु आइरी भस्म मिथ्या मत दूर नश्यो है,जिन चरणां चित्त लाई मखीरी॥१॥ शम संवेग निरवेद लस्यो है, करुणारस सुखदाइरी, जैन बैन अति नीके सगरे, अ भावना मन भाई सखीरी ॥२॥ शंका कंखा फल प्रति संसा, कुगुरु संग छीटकाइरी, परसंसा धर्महीन पुरुष की, इण भवमांही न कोइ सखीरी ॥३॥ दुग्ध-सिंधु रस अमृत चाखी, स्याद्वाद सुखदाइरी, जहर पान अब कौन करत है, दुरन य पंथ नसाइ-सखीरी ॥४॥ जब लग पूरन तत्व न जाण्यो, तब लग कुगुरु भुलाइरी सप्तभंगी गर्भित तुम वाणी, भव्य जीव सुखदाइ सखीरी ॥५॥ नाम रसायण सहु जग भाखे, मर्म न जाणे कांइरी, जिन वाणी रस कनक करणको,मिथ्या लोह गमाई-सखीरी ॥६॥ चंद्र किरण जस उज्जवल तेरो, निर्मल ज्योत सवाइरी, जिन सेव्यो निज आतम रुपी,अवर न कोई सहाई-सखीरी ॥७॥
(२) जिनजी चन्द्रप्रभ अवधारो के, नाथ निहालजो रे लो, बमणी बिरुद गरीब निवाजके, वाचा पालजो रे लो ॥१॥ हरखे हुँ तुम शरणे आव्यो के, मुजने राखजो रे लो.. बोरटा चार चुगल जे भंडारेमामामसजो लोगोश