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(१) तारु ध्यान धरे मस्तान मने, मारु दिल चहे रहुं तुज कने .
सेर . संसारना जे मूल रुपे, तें कषायो केलव्या, दुःखना जे डुंगरो ते, पापथी में मेलव्या, हूँ रखडी रहयो छ भवरुप वने, तारु ध्यान ॥ १ ॥
सेर - मारा जेवा दुर्मागीने, तारा विना शरयूँ नहि जिनराजनुं ए राज छोड़ी कयां बीजे रहेQजई ? रोको कर्म प्रभु जे मने नित्य हगे तारु ध्यान ॥२॥
। सेर नारकी थई में कदी हा, घोर दुःखो छे सहयां बे अन्त दुःख निगोदना, प्रभु में वह लहयां, आपो राह जीवन सुखकार बने तारु ध्यान ॥ ३ ॥
सेर देवलोके दुःखीयो, दुःखी पशु जीवन बरी, मानव जीवन पण दुःखमां विण धर्म हा एले करी मने दीनने जोड़ो जिन धन धने घने तारु ध्यान ॥ ४ ॥