Book Title: Prachin Stavan Jyoti
Author(s): Divya Darshan Prakashan
Publisher: Divya Darshan Prakashan

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Page 62
________________ ( ४१ ) ॥६॥ प्रातिहारज आठथी, तुम सुत दीये देदार रे चालो जोवाने मावड़ी, गयवर खंधे असवार रे ॥ ऋषभ•॥१०॥ दूरथी रे वार्जा सांभली, जोतां हरख न माय रे, हरखनां आंसुथी फाटीयां, पडल ते दूर पलाय रे ॥ ऋषम० ॥ ११ ॥ गयवर खघेथी देखीयो, निरुपम पुत्र देदार रे, आदर दीपो नहि मायने, माय मन खेद आपार रे ॥ ऋषम० ॥ १२ ॥ केना छोरु ने मावड़ी, ए तो छ वीतरागरे, अणी पेरे भावना भावतां केवल पाम्यां महा भाग रे ॥ ऋषम० ॥ १३ ॥ गयवर खंधे मुगते गयां अंतगड केवली एह रे, वंदो पुत्र ने मावड़ी, आणी अधिक सनेह रे ॥ ऋषम० ॥ १४ ॥ ऋषमनी शोभा में वरणवी, समकितपुर मोझार रे, सिद्धगिरि माहात्म्य सांमलो, संधने जय जयकार रे ॥ ऋषम० ॥१५॥ संवत अढ़ार अॅसीये, मागसर मास कहाय रे, दीप विजय कवि रायने, मंगलमाल सोहाय रे ऋषम० ॥ १६ ॥ (२) . माता मरुदेवीना नंद देखी ताहरी मूरति मारु मन लोमाणुजो मारु दिल लोभापुंजी । देखी० ॥ करुणानागर करुणा सागर, काया कंच नवान, धोरी लंछन पाउले कांई, धनुष पांचसे मान ॥ माता. ॥ १॥ त्रिगडे बेसी धर्म कहता सुणे पर्षदा बार, जोजनगामिनी वाणी मीठी, वरसंती जलधार ॥ माता० ॥ २॥ उर्वशी रुडी अपच्छराने, रामा छे मन रंग, पाये नेपुर रणझणे कांई, करती नाटारंभ ॥ माता० ॥ ३ ॥ तुंही ब्रह्मा तुंही विधाता तुं जगतारणहार तुज सरीखो नही देव जगतमां, अडवडीया आधार |माता०॥४॥

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