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( ४२ ) तुही भ्राता तुंही त्राता तुंही जगतनो देव सुरनर किन्नर वासुदेवा करता तुज पद सेव ।। माता० ॥५।। श्री सिद्धाचल तीरथ केरो, राजा ऋषम जिणंद, कीर्ति करे माणेक मुनि ताहरी, टालो मवभय फंद माता० ॥६॥
(३) बालपणे आपण ससनेही, रमता नव नव वेसे; आज तमे पाम्या प्रभुताई, अमे तो संसार ने वेशे;
हो प्रभुजी ओलंभडे मत खीजो ।।१।। जो तुम ध्यातां शिव सुख लही; तो तुमने केई ध्यावे; पण भवस्थिति परिपाक थया विण कोई न मुक्ती जावे
हो प्रभुजो ओलंभडे मत खीजो ।।।। सिध्ध निवास लहे भवसिध्धी तेमां शो पाड़ तुमारो; तो उपगार तुम्हारो लही अभव्य सिध्ध ने तारो;
__ हो प्रभुजी ओलंभडे मत खीजो ॥३॥ ज्ञान रयण पामी अकांते थई बेठा मेवाशी तेह मांहेलो अक अंश जो आपो ते बाते शाबाशी.
हो प्रभुजी ओलंभडे मत खीजो ।।४। अक्षय पद देतां भविजनने, संकीर्णता नवि थाय;' शिवपद देवाजो समरथ छो तो जश लेतांशु जाय;
हो प्रभुजी ओलंभडे मत खीजो ।।५।। सेवा गुण रंज्यो भविजनने, जो तुमे करों वडभागी