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है ॥१॥ सब योनि से उत्पन्न हुए हैं। सब मल मूत्र से भरे हुए हैं। सब के इंद्रिय एकसे हैं और विषय ( इंद्रियों का • उपभोग ) भी सब का एकसा है अर्थात् शील गुणादि से ही द्विज होते हैं ॥२॥ शूद्र भी शीलवान हो तो उत्तम ब्राम्हण होता है; और ब्राम्हण क्रियाहीन हो तो शूद्र से भी हलका होता है ॥ ३ ॥ शूद्र ब्राम्हण होसकता है, और ब्राम्हण शूद्र होसकता है। इसी तरह क्षत्रिय और वैश्य भी निजगुण कर्मानुसार उच्चनीच होते हैं ॥ ४ ॥
भारतवर्ष का इतिहास देखो, मीस का इतिहास देखो वा वर्तमान यूरोप का इतिहास देखो जहां तहां उच्च पदवीधरों में जाति मत्सर यह एक स्वाभाविक बात है। विद्या से, धन से, राजसत्ता से वा अन्य कोई भी कारण से उच्यता पाये हुओं में धीरे धीरे जाति मत्सर प्रज्वलित हो ही जाता है । हम उच्च और जो हमारे जैसे नहीं वे हलके यह भाव आज कलके उच्च शिक्षित वकील, डॉक्टर तथा अधिकारी वर्ग में भी दिखाई देता है। इसी प्रकार प्राचिन कालिन नेता और उनके गुरुसदृश्य ब्राम्हण भी इस भाव का निवारण न कर सके।
इस पकार वर्ण जड़ होने के प्रश्चात् पूर्व प्रचलित कन्या व्यवहार पर अकुंश रक्खा गया, और उच्च वर्ण की कन्या नीच वर्ण में न दी जाने के नियम हुए उच्च वर्णीय पुरुष निम्न