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" संवत १ ७५-७६ में जब कडबा कुणबियों का जथा मारवाड से पाटण आया तब सिद्धराजने उन को उझे में स्थान दिया ।"
इत्यादि प्रमाणों से मालुम होता है कि संवत ११७५-७६ अथवा लगभग १२०० के समय श्रीमाल नगर का लोक समुदाय वहां से चल कर गुजरात जांगल आदि देशों में जा बसा था। अर्थात् उसी समय पोरवाड भी श्रीमाल का त्याग कर गुजरात, जांगल, पद्मावती आदि समृद्धिशालि स्थानों में जा बसे।
सिद्धराजने जूनागड हस्तगत करने के बाद सौराष्ट्र के सूभायत पर श्रीमालियों की स्थापना की इस से तो सौराष्ट्र ( काठियावाड , में श्रीमालियों को बसने की अच्छी संधी मिल गई। यही कारण है कि गुजरात काठियावाड में श्रीमालियों की अब भी बहुत वस्ती है । पाटण की उन्नति भी इसी कारण हुई । जब श्रीमालियों को व्यापार के वास्ते स्थान की आवश्यकता थी उसी समय सौराष्ट्र विजय होने से सिद्धराजने इन लोगों को वसाहत के वास्ते सौराष्ट्र दिया और वह श्रीमालियों से त्वरित भर गया।
वैसे ही कर्णदेवके समय लाट विजय होकर श्रीमालियों को वहां की सूभायत मिली और वहां जाकर बसने का श्रीमालियों को अवसर मिला, और वे कालांतर से लाड कहलाये ।