Book Title: Porwar Mahajano Ka Itihas
Author(s): Thakur Lakshmansinh Choudhary
Publisher: Thakur Lakshmansinh Choudhary

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Page 149
________________ १३१ अब भी उज्जैन में उन्हीं हवेलीके सन्निध बने हैं। हवेली सचमुच . देखने योग्य गृह है। उपलब्ध कवालों में से एक गुजराती भाषाका वि. सं. १७९१ का तथा फारसी भाषा का फसली सन. ११२१ [वि. सं. १७६० ] का, उज्जैन के रुपचंद बिन हरीचंद बनिया पोरवाड इस नाम का मिला है। अर्थात् आजसे लगभग २२६ वर्ष से पहिले एवं १७६० से पहिले से पोरवाड लोक मालवा तथा उज्जैन में रहते थे। उस समय उनकी गुजराती भाषा थी अतएव उनका गुजरात से आना बहुत संभवनीय है। इन कवालों के अवलोकन से यह भी ज्ञात होता है कि “पहिले सौभाग्यवति महिलाएं अपने हस्ताक्षर की जगह. पुढे स्वस्तिक का चिन्ह बनाया करती थी। . परंतु हा !! आज से दस बारह वर्ष पूर्व उज्जैन में केवल तीन चार घर वीसा पोरवाडौं के तथा कुछ अधिक जांगडा पोरवाडौं के रह गये थे। अब फिर वहां व्यापार निमित्त रतलाम शाजापुर आदि स्थानों से कुछ पोरवाड आ बसे हैं और अब बीसा पोरवाडों की लगभग ९ के ग्रह संख्या वहां है।

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