________________ 136 इस कुल में कुछ वाद उपस्थित होने से ई० स० 1786 में महादाजीशिंदे ने इनके लिये पूना के पेशवा को एक पत्र लिखा है; उसमें इनको * " देशमुख, देशपांडे " इस नाम से संबोधित किया है। एवं पोरवाड झाति में यही एक ऐसा कुल पाया जाता है कि जो पुरुवंश का पुराना संबंध उसी वंश के राजा महाराजाओं के साथ आजतक मान सन्मान से पालता आया है; और पंवार सरकार भी वैसाही कृपया निभाते आये हैं। पोरवाडों की मालवा प्रांतिक महासभा के प्रथम आदि अधिवेशन के सभापतित्व का सम्मान, लेखक के ज्येष्ठ बन्धु चौधरी-कुल-दीपक देवास निवासी ठाकुर कृष्णसिंह गणपतसिंहजी को ही प्राप्त हुआ है यह सचमुच इस वंश का सौमाग्य है। इस आनंद के समय आज तारीख 22 मार्च सन 1930 इ० के शुभ मुहूर्त पर इस पुस्तक को समाम्त कर पोरवाड ज्ञाति का शुभचिंतन करते हुए लेखनी विश्राम लेती है।