Book Title: Porwar Mahajano Ka Itihas
Author(s): Thakur Lakshmansinh Choudhary
Publisher: Thakur Lakshmansinh Choudhary

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Page 130
________________ ११२ __ " काकः किंवा क्रमेलकः” अर्थात्-कौवा या ऊंट । इन असंगत शब्दों से सोमेश्वरजीने तुरंत कविता कर सुनाई " येनागच्छ मन्माख्यातो येनानी तश्चमेपतिः ! प्रथमं सखि ! कः पूज्यः काकः किंवा क्रमेलकः ॥ इस पर मंत्रिने १६ सहस्त्र द्रम भेट किये । वस्तुपाल स्वयं विद्वान तथा श्रीमान होने के कारण उसने विद्वानों को . बहुत दान दिया है। उन में से पूर्वोक्त कुछ नमुने पाठकों को दिखाए गए हैं। ___ राजा वीरधवल के पश्चात् उनका कनिष्ट पुत्र विमलसिंहा सनासीन हुआ तब वस्तुपाल के अधिकार कम करदिये गवे इतना ही नहीं किन्तु एक मुंह लगे समराक नाम के प्रतिहार के कहने पर राजा मंत्री से बलात्कार धन मांगने लगा। उन्होंने कहा कि "हमारे पास जो धन था वह शत्रुजय आदि तीर्थ स्थानों पर लगा चुके और अब कुछ नहीं रहा है " वस्तुपाल ने किसी समय समराक को दंड दिया था उसने अपने अनुकूल राजा को ऐसा सिखा पढा दिया था कि राजा ने वस्तुपाल का कहा न माना और कहने लगा कि यदि तुम्हारे पास धन नहीं है तो तुम "दिव्य” हो । मंत्री ने राजा से पूछा " आप कैसा दिव्य चाहते हैं" ? "उसने एक घडे में सांप रखवाकर सामने किया और कहा कि “यह दिव्य है । यदि तुम सच्चे हो तो इसमें हाथ डालो, सांप नहीं

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