Book Title: Porwar Mahajano Ka Itihas
Author(s): Thakur Lakshmansinh Choudhary
Publisher: Thakur Lakshmansinh Choudhary

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Page 133
________________ क्रमशः १८ करोड नब्बे लाख, बारह करोड अस्सी लाख और बारह करोड तिरपन लाख का व्यय हुआ । धर्म-कार्य में इनका कुल तीन अरब चौदह लाख रुपिया लगा। इनके बनवाये उत्तम मंदिरों में से केवल आबू के 'लूणवसिंह' नाम के मंदिर का वर्णन पाठकों के लिये दिया जाता है । ___ यह मंदिर वस्तुपाल के छोटे भाई तेजपालने अपना पुत्र लूणसिंह (लावण्यसिंह) तथा अपनी स्त्री अनुपम देवी के कल्याण के , वास्ते कई करोड रुपये में वि. सं. १२८७ (इ. स.१२३१ ) में बनवाया। ( यहां के शिला लेख में वि. सं. १२८७ है परंतु तीर्थ कल्प में १२८८ लिखा है ) यह मंदिर शिल्पकला का एक नमुना है। विमलशाह के मंदिर की यह मंदिर कुछ समता करता है। भारतीय शिल्प संबंधी विषयों के लेखक मि. फर्ग्युसन लिखते हैं कि: " इस मंदिर में जो कि संगमर्मर का बना है अत्यंत परिश्रम करने वाले हिंदुओं की टांकी से समान बारीकी के साथ ऐसी मनोहर आकृतियां बनाई गई हैं कि उनकी नकल कागज पर बनाने को. कितने ही श्रम तथा समय में भी मैं समर्थ नहीं हो सकता। (पि. इ. आफ. ए. आ. इन हिंदुस्थान ). इस मंदिर के गुंबज की कारागरी के संबंध में कर्नल टॉड साहेबने लिखा है कि: " इसका चित्र तयार करने में लेखनी थक जाती है और अत्यंत परिश्रमी चित्रकार की कलम को भी महान परिश्रम उठाना पडेगा।"

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