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भी अवसर प्राप्त हुआ। राजा सिंधुराज के पुत्र शंख [संग्राम सिंह ] ने वस्तुपाल के पास दूत द्वारा कहलाया कि, स्तंभपुर, हमारी कुलक्रमागत संपत्ति है इसे आप हम को लौटा दो
और यदि आपका मंत्रिपद निकल जावे तो आप भी हमारे पास चले आओ। आप को भी मै वही पद दूंगा अन्यथा विरोध के लिये हमारी तलवार उपस्थित है। मंत्रीने वीराचित प्रत्युत्तर देकर दूत को लौटा दिया । फलतः राजा शंख सेना लेकर " वटकुप” [वडकुआ ] सर [ तालाव ] के तट पर आ पहुंचा; और शनैः शनै आगे बढ़ने लगा । वस्तुगलने भी सेना सुसज्जित की, और स्वयं घोडेपर सवार हो तथा अपने स्वामिका स्मरण कर, प्रस्थान किया। मंत्रीने बडी बुद्धि मानी तथा वीरता से नगर का रक्षण किया और आगे बढा । न्याय तथा कर्तव्य पालनार्थ वस्तुपालने तलवार खींची और दोनों सेना की अच्छी मुठ भेड हुई । वस्तुपाल का योद्धा गुहील वंशीय भुवनपालने शंख के सुभट सामंत को जब मारा तब शंखने भुवनपाल को मार गिराया। यह देखकर वस्तुपाल ने अधिक भीषण स्वरुप धारण किया । बहुत लोग मारे गए व अंत में वस्तुपाल को जीत हुई और शंख वापिस लौट गया। इस समय राजा लावण्यप्रसाद भी अपने वीर पुत्र वोर धवल को साथ लेकर शत्रुओं को परास्त कर के वापस आ चुका था । उसने वस्तुपाल का विजय सुनकर बहुत संतोष प्रकट किया।