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राष्ट्रकूट के तानपत्र, चालुक्यों के शिलालेख आदि-) इस प्रकार देखने से मालुम होता है कि जिन जातियों के पुराण संवत एक हजार पहिले रचे गए हैं उन जातियों का अस्तित्व पुराण रचना काल से दोसो चारसो वर्ष पूर्व से होना चाहिये । जिन जातियों के नाम किसी स्थान के नाम से रक्खे गए हैं उन स्थानों का इतिहास देखा जाये तो निर्विवाद सिद्ध होता है कि वि. सं, ५०० के पूर्व ये ज्ञातियां थीं; परंतु उपलब्ध प्रमाणों से यह तो अबश्य कहना होगा कि प्राथमिक चतुवर्णों के मूल नियमानुसार आज से लगभग ९०० वर्ष तक उच्च वर्णीय पुरुष निम्न वर्ग की कन्याओं से लग्न संबंध करते थे। उदाहरणार्थ:-मारवाड का ब्राह्मण हरिश्चंद्र की दो पत्नियों में से एक ब्राह्मण जाति की और द्वितीय क्षत्रिय जाति की थी।* मारवाड से जाकर कनोज में अपना राज्य स्थापन करने वाले परिहार राजाओं में से राजा महेन्द्रपाल के गुरु राजशेखर ब्राह्मण की पत्नि विदुषि अवंति सुंदरी चोहान वंशकी थी । यह राजशेखर वि. सं. ९५० के लगभग जीवित था । अणहिलपुरपट्टण के राजा कर्णदेवका विवाह चंद्रपुर की जैन कुमारी मिलन देवीसे हुआ था और वहीं के राजा भीमदेव की विवाहित पट्टराणी
* देखो शिलालेख वि.सं. ८९४ चैत्र शुद्ध ५ और वि. सं. ९१८ चैत्र सु २ [ लखनौ म्यूझियम ] गहलोत कृत मारवाड राज्य का इतिहास.
पुष्ट ४८३