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को साथ लाकर श्रीमाल नगर में बसाये और चौरासी ज्ञाति की स्थापना करते समय इनका नाम “प्राग्वाट” रखा । प्राग-पूर्व दिशा। वाट वाडा, वसतिस्थान । श्रीमाल से गंगा यमुना का दोआब पूर्व दिशा में है । उक्त दस हजार योद्धा पूर्व से आये । अतः “प्राग्वाट" कहाये जैसे अब भी “दक्षणी" पुरबिये आदि संज्ञाएं हैं।
दूसरी एक कथा ऐसी भी है कि, परमार राजा जयसेन के दो पुत्र भीमसेन और चन्द्रसेन थे । चन्द्रसेन ने चंद्रावती बसाकर वे वहां राज्य करने लगे और भीमसेन
का पुत्र पुंज और उसका भाई [ श्रीकुमार ] उप्तलदेवकुंवर • रुष्ट होकर श्रीमाल नगर से जाने के पश्चात् इस नगर की स्थिति बहुत चिंता जनक होगई। वहां चहुंओर से लुटेरे डाकुओं ने नगर को लूटना आरंभ किया। इस संकट से बचने के लिये वहां के महाजन लोगों ने चक्रवर्ती पुरुखा राजा की मदत लेना निश्चित किया। वे लोग चक्रवर्ती के पास गये और अपनी दुःखदवार्ता उन्हें सुनाकर पुरखा राजा ने अपने निजी दसहजार योद्धा श्रीमाल नगर का रक्षण करने को भेज दिये । उक्त योद्धाओं के आने से नगरवासियों का दुःख नष्ट हुआ, और वे आनंद से रहने लगे । ये योद्धा नगर के बाहर पूर्व की ओर आकर हठरे थे। वहां अम्बिकादेवी का एक मंदिर था। सुभट गण उस देवी