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ऐसा नहीं है। यह भेद न तो अकेले गुजरातियों में ही है
और न अकेले मारवाड मालवीयों में ही है, किंतु सभी में पाया जाता है । इससे सिद्ध होता है कि, सिद्धराज कुमारपाल के समय संवत् १२०० के पीछे और संवत् १४३३ के पहिले के मध्यवर्ती काल में यह घटना हुई होना चाहिये । वहां वस्तुपाल, तेजपाल का समय बिलकुल ठीक मिलता है, और ऊपरी निदर्शित प्रमाणों से यही कारण विश्वसनीय प्रतीत होता है। [वि. सं. १२७५ ] के मत भेद से तट [तड] होना और तड को ज्ञाति का रूप प्राप्त होना इसको १०० वर्ष का समय लगना कोई अधिक नहीं है ।
तड से ज्ञाति कैसे बनी।
कोई भी ज्ञाति में तड पडती है तो वह प्रायः मत भेद, मानसन्मान, आपसी द्वेष आदि कारणों से ही पडती है । इन तडों के उत्पादकों में तथा पुष्टिकारकों में कितना भी मत भेद वा वितुष्ट हुआ तो भी वे एक दूसरे को विजातीय नहीं मानते, और एक न एक दिन फिरसे सम्मिलित होने की आशा रखते हैं। यदि साधारण मत भेद हो तो तड का निपटेरा सुलभता से हो जाता है अन्यथा जातीय द्वेष तथा मान सन्मान मूलक तड न्यायान्याय छोडकर टर का