________________
२४
श्रीमाल पुराण की इस कथा में केवल ब्राह्मण ही मनुष्य हों और उन्ही के सुख के वास्ते औरों की उत्पत्ति हुई ऐसा दिखाया है । हरएक मनुष्य अपने जीवन के लिये स्वतंत्र होता है; परंतु पुराण विपरीत ही बताते हैं । इस कथा परसे हमें इतना ही लेना चाहिये कि श्रीमाली सोनी ब्राह्मणों के प्रतिबिम्ब से याने उन्हों के अनुलोम संबंध से हुए; और वे नियमानुसार निम्न वर्णके होने के कारण यज्ञोपवित धारण नहीं कर सकते। वैसेही वणिक ज्ञातिकी उत्पति में उन्हें यज्ञोपवित सहित बताये हैं । स्कंधपुराण के सह्याद्रि खंड में तथा " जातिविवेक नामक मिश्र जातियों के संग्रह ग्रंथ में सोनियों की निम्नोक्त उत्पत्ति बताई है :
""
शूद्रा शयनं आरोल ब्राह्मणाश्च कथचन । जनयेद ग्राम्य धर्मेण तस्य पार सर्व सुतं ॥ महाशूद्रस्य विख्यातः शूद्रेभ्यः किंचिदुत्तम ? | स्वर्णकारस्य तस्येह स्नानं धे त्रं पवित्रकं ॥ सैव शूद्रस्य धर्मेण वर्तनं तस्य च स्मृतं । ( जाति विवेक )
एक कथा ऐसी भी बताती है कि, श्रीमल्ल राजाने यह नगर बसाकर उसका श्रीमाल नाम रक्खा । इस कथानुसार लक्ष्मी श्रीमल्ल राजा की पुत्री थी, और उसका आबू के परमार राजा के साथ विवाह किया गया था । अस्तु ।