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श्री ( लक्ष्मी को देवोंने अर्पण की हुई पुष्पमाला से यह स्थान आवृत होगया, एतदर्थ इसका नाम श्रीमाल हुआ, ऐसा उक्त श्लोक का भावार्थ है । कृतयुग में पुष्पमाल, त्रेता में रत्नमाल द्वापार में श्रीमाल और कलियुग में भिन्नमाल ऐसे यह कथा स्वयं
चार नाम इस नगर के बताए हैं । परंतु विरोध उत्पन्न करती है । श्री लक्ष्मी इस नगर की स्थापना यदि कृतयुग में करती तो उसी युग में पुष्पमाल नाम रख्का होता तो वहां के नगर वासियों का नाम पुष्पमाली होना चाहिये था । ऐसा न होते द्वापारयुग के अंत में इसका नाम श्रीमाल हुआ है और उसी समय के पश्चात् वहां के नगरवासि श्रीमाली कहाए हैं एवं श्रीमाल नगर की स्थापना द्वापार युग के अंत में मानना अधिक योग्य होगा । विमल प्रबंध और विमल चरित्र में कहा है कि:
श्रीकार स्थापना पूर्व, श्रीमाले द्वापारांतरैः ।
श्री श्रीमालि इति ज्ञाति, स्थापना विहिताश्रिया ।।
( विमल प्रबंध )
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भेटतणी लखिमी बावरी, अप्रिसाद सुरंगऊ फरी । थापी मुरति मुहरत जोई, लखिमि लक्षणवंती होई ॥ द्वापर मांहि होई स्थापना, जेह नइ भय टालिया पापना । श्री गोत्रज श्रीमाली तणी, करई चींत प्रासादह तणी ॥
द्वापारयुग के अंत में श्रीमाली ज्ञाति की स्थापना हुई; और तभी से श्रीमालियों की श्रीदेवी गोत्रजादेवी मानी गई ।