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है; ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, हजाम, धोबी, पारसी, मुसलमान, आदि कोई भी जाति का जो कोई मास्तर का काम करे वह मास्तर कहावे, वैसेही हर कोई जातिका मनुष्य वाणिज्य करे तो बनिया कहावे ।
पहिले वर्ण व्यवस्था के नियमन के समय में उच्च ज्ञाति के मनुष्य को निम्न वर्ण के मनुष्य का धंदा करना नियम बाह्य न था।
इस वाक्य के अनुसार खेती, गौपालन, तथा व्यापार वैश्यों का नियमित काम था। परंतु ब्राह्मण क्षत्रिय यदि चाहें तो उक्त काम कर सकते थे। केवल अमुक समय तक यदि उच्च वर्णीय मनुष्य निम्न वर्ण के मनुष्य का काम करता रहे तो वह उसी निम्न वर्ण का माना जावे ऐसा भी एक नियम था । आजकल हम जिसे 'बनिया' नाम से संबोधित करते हैं वह इसी तरह ब्राह्मण क्षत्रिय और वैश्यों में से व्यापार करने वाले लोगों का समूह है। इस समूह की वृद्धि होने का एक और भी महान कारण हुआ है ओर उसे भारतीय धार्मिक विप्लव कहना अयोग्य न होगा।
जाति मत्सर के परिणाम से आर्य प्रजा में वर्णों को जडता आना तथा वर्णसंकर के कारण वर्गों में भेदा भेद की वृद्धि होकर शतशः ज्ञातियां निर्माण होना यह समाज विस्खलित होने का भविष्यत् भय तात्कालिन कई विचारवान