________________
सुधारकों को भय भीत कर रहा था। जैन तथा बौद्ध धर्म के प्रवर्तक जैसे ब्राह्मणों के यज्ञ यागादिक निषेध करने को कटिबद्ध हुएथे वैसे वे उक्त अनिष्ट ज्ञाति नेदके भी कट्टर विरोधी बनेथे। इनोंने इस आत्मघातकी बंधनका अनादर कर एकही जाति ( संघ) की स्थापना की, एवं अपने अपने सिद्धांत के सभी अनुयायीयों को एकही संघ (ज्ञाति ) के घटक निश्चित किये, और उनके धार्मिक तथा सामाजिक व्यवहार समान रक्खे । जैन तथा बौद्ध धर्म प्रवर्तकों की साधुता, उग्र तपश्चर्या और निस्वार्थ लोकहित वृत्ति देखकर लाखों लोक उनकी ओर आकर्षित हुए । सबकेसाथ समान व्यवहार तथा सब जीवों के साथ दयाभाव इन दो सिद्धांतोंने लक्षावधि मनुष्यों को वश करलिये। क्या ब्राह्मण, क्या क्षत्रिय, क्या वैश्य, इन तीनों वर्णकी ज्याति उपज्यातियां एकत्रित कर जैन संघ बनाया गया। शूद्र मानी गई ज्ञातियों को जैन संघमें सम्मिलित करना या नहीं इसका योग्य प्रमाण मिलता नहीं; परंतु रंगरेज ( छीपा) आदि कई शूद्र जातियां जैन धर्मावलंबी होते हुएभी जैन संघसे इनका खानपानादि व्यवहार नहीं है. इससे संभवनीय है कि, शूद्र उस समय तिरस्करणीय गिने जानेके कारण लोकरुचिकी ओर ध्यान देकर इनोंका अनादर कियागया हो। आजकल जैसे ढेड, भंगी आदि अस्पों को क्रिश्चनोंने ख्रिस्ति समूहमें सम्मिलित करलेने से उच्चवर्ण के लोक ख्रिश्चन होने से घृणा करने लगे हैं वैसेही यदी जैन और बुद्ध धर्म प्रवर्तक