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पोरवाड महाजनों का इतिहास ।
ज्ञातिओं की उत्पति ।
श्रीमाल पुराण से जाना जाता है कि द्वापारयुग का अंत और कलियुग के आरंभ से ज्ञातियों की स्थापना हुई है । कलियुग के पहिले अन्य युगों में ज्ञातियां आज जिस रूप में दिखाई देती हैं उस रूप में न थी । पहिले ब्राम्हण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र यही चार वर्ण थे। जैसे प्रोफेसर का काम करने वाला प्रोफेसर कहा जाता है, खेती का काम करने वाला किसान कहा जाता है, सिपाईगिरी करने वाला सिपाई कहा जाता है वही बात पहिले इन वर्गों की थी । जो कुलगोर की तरह लोगों को धर्म-संस्कार कराकर उन्हें धर्मशास्त्र पढ़ाते वे आचार्य, जो पाठशाला स्थापन कर विद्यार्थियों को अनेक प्रकार की विद्याओं का अध्ययन कराते वे अध्यापक, जो यज्ञयाग कराते वे याजक, जो साधु -वृत्ति से जीवन व्यतीत करते वे साधु और जो विविध प्रकार के
तादि क्रिया करते वे मुनि कहाते और इन सब का समावेश ब्राम्हणों में होता । जैसे:
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आचार्या अध्यापका याजकाः साधवाः मुनयश्च ब्राम्हणाः ।
( सद्धर्म - सूत्र )