Book Title: Pind Niryukti
Author(s): Jaysundarsuri
Publisher: Divyadarshan Trust
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अनुक्रमः
पृष्ठाङ्कः
१३३ १३३-१३४
१३४
१३४
१३४ १३४-१३५ १३५-१३६
१३६
गाथाक्रमाङ्कः
विषयः ५५३ एषणानिक्षेपाः (४) ५५४-५५६ द्रव्ये वानरयूथदृष्टान्तः ५५७ भावे शङ्कितादिदशदोषाः
॥ शङ्कितदोषनिरूपणम् ॥ ५५८ शङ्किते ग्रहण-भोगयोश्चतुर्भङ्गी । ५५९ पञ्चविंशतिदोषाः ५६०-५६२ श्रुतज्ञानस्य प्रामाण्यम्, अन्यथा दिक्षाप्रवृत्तिनिरर्थिका ५६३-५६६ शङ्कितचतुर्भगिव्याख्या ५६७ परिणामाशुद्धेरनेषणीयताहेतुत्वम्
॥ म्रक्षितदोषनिरूपणम् ॥ ५६८-५६९ प्रक्षितभेद-प्रभेदाः । ५७०-५७२ सचित्तपृथिवीकायादिम्रक्षितस्वरूपम् ५७३ हस्त-मात्रकयोश्चतुर्भङ्गी ५७४ अचित्तम्रक्षितग्रहणाग्रहणविधिः ५७५ अगर्हितग्रहणव्यवस्था ५७६ गर्हितद्वैविध्यप्रदर्शनम्
॥ निक्षिप्तदोषनिरूपणम् ॥ ५७७-५७८ निक्षिप्ते आद्यचतुर्भगिकाप्रथमभङ्गप्रदर्शनम् ५७९ स्वस्थान-परस्थाननिक्षेपप्रदर्शनम् ५८० प्रथमभङ्गे शेषकायातिदेशः ५८१ आद्यचतुर्भङ्गिकाशेषभङ्गप्रदर्शनं शेषचतुर्भङ्गीद्वयप्रदर्शनं च ५८२ आद्यचतुर्भङ्गिकाग्रहणे प्रतिषेधः ५८३
प्रकारान्तरेण चतुर्भङ्गिका ५८४-५८५ शेषचतुर्भङ्गीद्वयतृतीयभङ्गे विशेषोपदर्शनम् ५८६-५८८ सप्तविधो विध्याताद्यग्निः तत्स्वरूपं च ५८९ यन्त्र-चुल्ल्यादिषु भजना ५९० अनत्युष्णोदकमघट्टितकर्णं ग्राह्यम् ५९१ पार्शवलिप्तादीनाश्रित्य षोडशभङ्गाः ५९२ अत्युष्णोदकग्रहणे दोषाः ५९३ वात-हरितयोरनन्तर-परम्परभेदी
॥ पिहितदोषनिरूपणम् ॥ ५९४ सचित्तादिपिहितेषु चतुर्भङ्गिकाः
१३६ १३६-१३७
१३७ १३७ १३७ १३८
१३८ १३८ १३८
१३९
१३९ १३९
१४० १४०-१४१
१४१ १४१ १४१ १४२ १४२
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