Book Title: Pind Niryukti
Author(s): Jaysundarsuri
Publisher: Divyadarshan Trust

View full book text
Previous | Next

Page 168
________________ ॥ चूर्णपिण्डनिरूपणम् ॥ १२९ गाथासमुदायार्थः॥५३४॥ साम्प्रतं चूर्णोदाहरणमाह जंघोहीणा ओमे कुसुमपुरे सिस्सजोग रहकहणं। खुड्ड दुगंजणसुणणं गमणं देसंत ओसरणं॥५३५॥ भिक्खे परिहायंते थेराणं तेसि ओमे देंताणं। सह भोज चंदगुत्ते ओमोदरियाए दोब्बल्लं ॥५३६॥ चाणक्क पुच्छ इटालचुण्ण दारं 'पिहित्तु धूमे य। दटुं कुच्छ पसंसा थेरसमीवे उवालंभो॥५३७॥ जंघा० गाहा। भिक्खे गाहा। चाणक्क० गाहा। आसामर्थः कथानकादवसेयस्तच्चेदम् पाडलिपुत्ते णगरे चंदउत्तो राया, चाणक्को से मंती। तत्थ य आयरिया जंघाबलपरिहीणा ओमे गच्छं विसज्जिउकामा सीसस्स पत्तभूयस्स रहे जोणीपाहुडं साहेंता णिसुया पच्छण्णठिएहिं दोहिं खुड्डएहिं। तत्थ य अवधारिओ एक्को अंजणचुण्णओ। गओ गच्छो देसं। ततो य णियत्ता चेल्लया। भणिया आयरिएहिं– “दुट्ट भे कयं जं णियत्तं ति; ता संपयं चिट्ठह"त्ति। तत्थ य अलभमाणाए भिक्खाए मा उमोयरियाए गुरूणं पीडा होउ त्ति काऊण चुन्नंजणंजियलोयणा अदिस्समाणा चंदगुत्तेण सहाणुदिणं एगत्थ समुद्दिसंति। ततो संपुण्णाहाराभावाओ दुब्बलीभूओ राया। पुच्छिओ चाणक्केण– “किण्ण उद्धट्टसि ?" । तेण भणियं- आमं। “णूणमेयस्स कोवि पच्छण्णट्ठितो आहारमवहरई"त्ति चिंतंतेण चाणक्केण पत्थराविओ भोयणमंडवे इट्टालचुण्णो, पिहियाणि दाराणि, कारावितो धूमो। तओ णिब्भरधूमगलंतंसुधोयचुण्णंजणा दिट्ठा समुद्दिसंता खुड्डया। गहिया चाणक्केण वंदिऊण विसज्जिया। जाया य दुगुच्छा चंदगुत्तस्स। पसंसियं चाणक्केण जहा–“पवित्तीकओ तुमं रिसिकुमारएहि"ति। चाणक्केण वि गंतूण गुरुसमीवमुवालद्धा चेल्लया। गुरुणा वि उवालंभिऊण चेल्लए उवालद्धो चाणक्को– “एरिसो तुमं सावगो जेण साहूणं पि ण जोगवहणं वहसि"। ततो मिच्छामिदुक्कडं दाऊण “भयवं ! संपयं वहामि"त्ति भणंतो वंदिऊण णिग्गओ चाणक्को त्ति॥५३५-५३७॥ अत्र दोषानाह जे विज-मंतदोसा ते च्चिय वसिकरणमादिचण्णेहिं। एगमणेगपदोसं कुज्जा पत्थारओ वावि॥५३८॥दारं॥ जे विज० गाहा। व्याख्या- ये विद्या-मन्त्रपिण्डयोर्दोषास्त एव वशीकरणादिचूर्णसमुत्पादितपिण्डे सविशेषतरा दृष्टव्याः। कथम् ? स पिण्डदाता एकस्य अनेकेषां चोपरि प्रद्वेषं कुर्यात्; 'पत्थारओ वावि'त्ति समस्तसङ्घस्य वधमपीति, अतश्चूर्णपिण्डो न ग्राह्य इति गाथार्थः॥५३८॥ (टि०) १. ०घाईहीणे जे२॥ २. पुरि खं०॥ ३. ०करणं जे१,२ विना॥ ४. ०क्खं जे१॥ ५. दोवण्णं जे२॥ ६. विवेउ जे१॥ ७. भणियं ला०॥ ८. होइ त्ति ला०॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226