Book Title: Pind Niryukti
Author(s): Jaysundarsuri
Publisher: Divyadarshan Trust
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परिशिष्ट-१ गाथा
पृष्ठ गाथा जंघा-बाहु-तरीय व....॥३५८॥ ...............८८ | जाई-कुल-गण-कम्मे....॥४७१॥............ ११३ जंघापरिजितसड्डी अद्धिति...॥५४४॥ ......... १३१ | जाई-कुले विभासा गणो....॥४७२॥......... ११३ जंघाहीणा ओमे...॥५३५॥ .................. १२९ | जाणंतमजाणंतो तहेव...॥१२५।। ............. जइ पच्छकम्मदोसा...॥६५०॥ .............. १५५ जामाइ-पुत्त-पइमारणं....॥४६६॥ ............ जइ वि य ता....॥५०१।।
| जायसु ण एरिसो हं....॥५०६॥............. जइ वि सुतो मे...॥५४८॥.................. जारिसिय च्चिय लद्धा...॥५६५॥ ............ जइ संका दोसकरी...॥५६६॥ ............... जाव ण बहुप्पसण्णं...॥२८॥...... जइणो वीसाऽभिग्गह....॥१७८॥...............४३ जावंतहासिद्धं ण एति....॥२९६॥ जइणो सावग-णिण्हग....॥१७९॥ ............. ४३ | जावंति देवदत्ता गिही...॥१६४॥. जण सावगाण खिसण...॥५४१॥ ............ | जावंतिए विसोही....॥४१७॥ ................ १०० जत्थ उतइओ भगो....॥१८१॥ .
| जावंतियमुद्देसं पासंडीणं....॥२५३॥.. जत्थ उ थोवे थोवं...॥६०५॥
जियसत्तुदेवि चित्त...॥१५॥................ जत्थ उ सचित्तमीसे...॥५८२॥ .......... जीवत्तंमि अविगते...॥६४६॥ .............. जदि से ण जोगहाणी...॥६५४॥
१५६ जीवामो कह वि....॥२४२॥ .........५८ जम्मं एसति एगो...॥९॥
| जुजइ गणस्स खेत्तं....॥१८५॥............ जस्स पुण पिंडवायट्ठया...॥९॥............. जे वि य परिवेसंति...॥१४२॥ ............ जह कम्मं तु अकप्पं....॥२११॥............ जे विज-मंतदोसा...॥५३८॥ ................ जह कारणं तु तंतू...॥८५।। ............... | जो जहवायं ण कुणइ....॥२०८।। जह कारणमणुवहयं...॥८६॥ ................ | जो पुण विस्सामिज्जति...॥३९॥ ............... जह चेव पुव्वलित्ते....॥३७८॥ .............. | जोइ-पदीवे कुणइ व....॥३३१॥ ............. जह चेव य निक्खित्ते...॥५९५॥ .......... जोग्गाऽजिण्णे मारुयणिसग्ग...॥१०४॥.......... जह चेव य निक्खित्ते...॥६००॥.......... जोतिस-तणोसहीणं मेह...॥१०२॥............. २६ जह चेव य संजोगा...॥६४२॥ ........ ठाण-णिसीद-तुयट्टण...॥२२॥...................८ जह जह पदेसिणिं...॥५३२॥............ | ढड्डरसर चुन्नमुहो मउयगिरा....॥४५५॥ ...... १०८ जह तिपदेसो खंधो...॥७२॥ ................ | णणु सुहुमपूइयस्सा....॥२८३॥ ................ ६९ जह ते दंसणकंखी....॥२३८॥............... | णत्थि छुहाए सरिसिया...॥६९९॥........... जह वंतं तु अभोज्जं....॥२१३॥ ............... ५२ | णदि कण्हबिण्ण दीवे...॥५४०॥......... जहेव कुंभाइसु पुव्वलित्ते....॥३८१॥ .......... ९२ | णवणीय मंथु तक्क....॥३०७॥.. जा जदमाणस्स भवे...॥७०८॥.............. १६९ | णाण-चरित्ता चेवं....॥१७०॥............ जा जेण होदि वण्णेण....॥४४९॥ ........... १०७ । णाणं दसण-तव...॥७६॥ ..................
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