Book Title: Pind Niryukti
Author(s): Jaysundarsuri
Publisher: Divyadarshan Trust
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णित
॥ मालापहृतदोषनिरूपणम् ॥ कायविराधना कपाटविषया विभाषितव्येति रूपकार्थः॥३८१॥ विशेषतः कपाटोद्भिन्नदोषानाह
घरकोइल-संचारा आवत्तणपीढियाए हे?वरिं।
णिते ठिए य अंतो डिंभाई पेल्लणे दोसा॥३८२॥ घर० गाहा। व्याख्या- गृहकोकिला-सञ्चारादिविषया विराधना आवर्तनपीठिकाया अधस्तादुपरि च कपाटे नीयमाने आनीयमाने च, स्थितेषु चान्तर्डिम्भादिषु प्रेरणे दोषाः, सञ्चारः = कीटिकानगरः, आवर्तनपिठिका = भूमिकेति गाथार्थः॥३८२॥ अपवादमाह
घेप्पइ अकुंचियागम्मि कवाडे पतिदिणं परिवहंते।
अजऊमुद्दियगंठी परिभुजइ दद्दरो जो य॥३८३॥ दारं॥ घेप्पइ गाहा। व्याख्या- गृह्यते अकुचिकाके कपाटे- अविद्यमाना कुञ्चिका यस्मिंस्तत्तथा तत्र गृह्यते अथवाऽविद्यमानक्रेङ्कारवे कपाटे गृह्यते, प्रतिदिनं परिवहति सति, अजतुमुद्रितग्रन्थिः = जतुमुद्रारहितग्रन्थिः, श्लथपाशकनिबद्ध इत्यर्थः, परिभुज्यते दईरो यश्च तत्र ग्रहणं भिक्षायाः कल्पत इति गाथार्थः॥३८३॥ उक्तमुद्भिन्नद्वारम्॥ छ। अधुना मालापहृतमाह
मालोहडं पि दुविहं जहण्णमुक्कोसगं च बोद्धव्वं ।
___ अग्गपदेहि जहण्णं तव्विवरीयं तु उक्कोसं॥३८४॥ . मालोहडं पि गाधा। व्याख्या- मालापहृतमपि द्विविधं जघन्यमुत्कृष्टं च ज्ञातव्यम्। अग्रपद्भ्यां जघन्यं तद्विपरीतं तूत्कृष्टमिति गाथार्थः ॥३८४॥ जघन्यस्योदाहरणमाह
भिक्खू जहन्नगंमी गेरुय उक्कोसगंमि दिटुंतो। अहिडसण मालपडणे य एवमाई भवे दोसा॥३८५॥ मालाभिमुहिं द₹ण अगारिं निग्गओ तओ साहू। तच्चन्नियआगमणं पुच्छा य अदिन्नदाण ति॥३८६॥ मालम्मि कुडे मोदग सुगंध अहिपविसणं करे डक्का।
अण्णदिणसाहुआगम निद्दय कहणा य संबोही॥३८७॥ भिक्खू गाहा। मालाभिमुही गाहा। मालम्मि गाहा। आसामर्थः कथानकादवसेयस्तच्चेदं
इहेव भारहवासे जयपुरे णगरे जक्खदिण्णो णाम गाहावई होत्था। वसुमती से भारिया। अण्णया य गोयरचरियाए विहरंतो समागतो तेसिं गिहे साहू। उट्ठिया वसुमती मालोहडं भिक्खं दाउं। तो अकप्पो (टि०) १. याइ हे० जे१,२ विना॥ २. ०लकासञ्च० जि१॥ ३. चूलिके० जि० ला०॥ ४. स्मिंस्तथा ला०॥ ५. यद्वाऽवि० ला० विना॥ ६. द्रिते ग्र० ला०॥ ७. ०बद्धे ला०॥ ८. तु जे१॥ (वि०टि०).. परिभुज्यते = प्रतिदिनं बध्यते छाद्यते च। इति वीर०॥*. अग्रपद्भ्यां = उपरिस्थं वस्तु गृहीतुमशक्तेन उत्पाटिताभ्यां पाणिभ्यामित्यर्थः॥

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