Book Title: Parvatithi Kshay Vruddhi Prashnottar Vichar tatha Muhpatti Bandhan Nibandh
Author(s): Hemchandrasuri Acharya
Publisher: Chinubhai Trikamlal Saraf

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Page 13
________________ अर्थ - कह्युं छे के- एक ज पूरी थाय तो ते बीजी तिथि क्षय पर्वतिथिक्षय वृद्धिप्रश्नोत्तर विचार दिवसमां बन्ने तिथिओ पामे छे. प्रश्न ४ - जैन सिद्धान्तानुसार ज्योतिषना गणित प्रमाणे पर्वतिथिनो पण क्षय आवे छे अने लौकिक पंचांगमां तो पर्वतिथिनी क्षय - वृद्धि बन्ने आवे छे ते मनाय के नहि ? उत्तर - जैन सिद्धान्त प्रमाणे पर्वतिथिनो पण क्षय आवे छे अने लौकिक पंचांगमां तो क्षयवृद्धि बन्ने आवे छे, परंतु भगवतीसूत्रमां अष्टमी, चतुर्दशी, अमावास्या अने पूर्णिमाने प्रधान पर्वतिथिओ कहेली छे. जुओ भगवती सूत्रनो पाठ, श, २, उ. ५. पत्र १३४. बहूहिं सीलव्वय गुण वेरमणपच्चक्खाणपोस होववासेहिं, चाउदसमुद्दिपुण्णमासिणीसु पडिपुन्नं पोसहं सम्मं अणुपालेमाणे, टीका- 'वहूहिं ' इत्यादि शीलवतानि - अणुव्रतानि गुणा - गुणत्रतानि विरमणानि - औचित्येन रागादि निवृत्तयः प्रत्याख्यानानि पौरुष्यादी नि पौषधं - पर्व दिनानुष्ठानं तत्रोपवासः - अवस्थानं पौषधोपवासः, पौषधं च यदा यथाविधं च ते कुर्वन्तो विहरन्ति तद्दर्शयन्नाह - 'चाउद्दसे' त्यादि इहोद्दिष्टा - अमावस्या 'पडिपुन्नं पोसह 'ति आहारादिभेदात् चतुर्विधमपि सर्वतः ॥ भावार्थ - तुंगिया नगरीने विषे ऋद्धिमान् घणा श्रावको वसे छे. तेओ अणुव्रत, गुणव्रत, उचिततावडे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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