Book Title: Parvatithi Kshay Vruddhi Prashnottar Vichar tatha Muhpatti Bandhan Nibandh
Author(s): Hemchandrasuri Acharya
Publisher: Chinubhai Trikamlal Saraf

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Page 55
________________ [] मुहपत्तिबन्धन यत्र मुखवखिकाधिकारोऽस्ति तत्र तत्र क्वापि दवरकस्य नामापि नास्ति, तथा श्रीसुधर्मास्वामिन आरभ्याऽविच्छिनद्धपरंपर्याऽपि क्वापि धर्मगच्छे दवरकेण मुखवत्रिकाबन्धनं न दृश्यते, इति जिनागमविहिताऽऽचरणाभ्यां विरुद्धमेव तावत् दवरकबन्धनम् । अन्यच्च गगधरादिभिरपि यथावसरे मुखे मुखवस्त्रिका बद्धासीत् न सर्वदा, यदि सर्वदा बद्धा भवेत् , तर्हि विपाकमूत्रपाठाऽसंगतिः स्यात् । ___ अर्थः-वर्तमान काले केटलाक लिंगी निह्नवो हमेशा दोरावडे मुहपत्ति मोढे बांधी राखे छे, ते जिनाज्ञानुसारी छे के विरुद्ध ? उत्तरः-आ वात जिनाज्ञाविरुद्ध जणाय छे, कोईपण सूत्रमा आवी विधि कहेल नथी. वळी शास्त्रमा ज्या ज्यां मुहपत्तिनो अधिकार छे, त्यां त्यां कोईपण ठेकाणे दोरानु नाम पण नथी. तेमज पूज्यश्री सुधर्मास्वामीथी आरंभीने अविच्छिन्न वृद्ध परंपराए कोईपण धर्मगच्छमां दोराथी मुहपत्ति बांधवानु विधान पण देखातुं नथी, माटे दोराथी मुहपत्ति बांधवी आ वात जिनागम अने आचरणाथी विरुद्धज छे. बीजं गणधर महाराजे पण यथाअवसरे मोढे मुहपत्ति बांधी हती, पण हमेशाने माटे तेओ मुख पर मुहपत्ति बांधता नहि. जो हमेशा बांधी राखता होय तो विपाकसूत्रनो पाठ असंगत थई जात. मोढे मुहपत्ति बांधवाने माटे परम्पराथी आवेल विधि प्रमाणे साधुए बन्ने कान विधाववा जोईए. ते माटे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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