Book Title: Parvatithi Kshay Vruddhi Prashnottar Vichar tatha Muhpatti Bandhan Nibandh
Author(s): Hemchandrasuri Acharya
Publisher: Chinubhai Trikamlal Saraf

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Page 54
________________ गीतार्थपरम्परा भापति वखते मोढा पर मुहपत्ति बांधवानो रिवाज गणधर महाराजना समयथी चाल्यो आवे छे ते माटे वादिवेताल श्री शान्तिसूरि महाराज श्री चैत्यवंदन महाभाष्यमां "देशना" ना अधिकारमा स्पष्ट रीते कहे छे केसिंहासणे निसन्नो, पाए ठविऊण पायपीढमि । करधरियजोगमुद्दो, जिणनाहो देसणं कुणइ ॥८४|| तेणं चिय सूरिवरा. कुणंति वक्खाणमेयमुद्दाए । जं ते जिणपडिरूवा, धरंति सुहपोत्तियं नवरं ॥८५॥ ___ अर्थ :-पादपीठ उपर पग स्थापन करी, सिंहासन उपर बेसी, हाथमां योगमुद्रा धारण करीने जिनेश्वरदेव धर्मदेशना आपे छे, तेथी जिनेश्वरभगवंतना प्रतिनिधिरुप एटले जिनेश्वरना सरखा गणधर महाराज पण योगमुद्राएज धर्मदेशना आपे छे, विशेषमां एटलुं के तेओ मोढा पर मुहपत्ति धारण करे छे, एटले कानना छिद्रमां भरावे छे. पण स्थानकवासीनी माफक दोराथी बांधता नथी. गणधर महाराज पण . यथावसरे मोढे मुहपत्ति बांधता हता, ए वातनो स्पष्ट खुलासो “ प्रश्नोत्तरसार्धशतक " मां पण मली आवे छे. जुओ ते पाठ ननु आधुनिकाः केचिल्लिङ्गिनो निवाः सर्वदा दवरकेण मुखवत्रिकां मुखे बवैव रक्षन्ति, त्तजिनाज्ञानुसारि उत तद्विरुद्धं ? उच्यते-जिनाज्ञाविरुद्धमेवेदमिति ज्ञायते, क्वापि सूत्रे इद्दग्विधेनुक्तत्वात् , विश्व शा षु यत्र Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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