Book Title: Parvatithi Kshay Vruddhi Prashnottar Vichar tatha Muhpatti Bandhan Nibandh
Author(s): Hemchandrasuri Acharya
Publisher: Chinubhai Trikamlal Saraf

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Page 58
________________ मौतार्थपरम्परा शिथिलाचारी यतिवर्गे पण आ प्रथानो त्याग कर्यों न हतो. विक्रम संवत १९१२ सुधी आ प्रवृत्ति अविच्छिन्नपणे चालती हती. पछी पू. श्रीबुटेरायजी महाराज स्थानकवासी संप्रदायमाथी संवेगी मार्ग मां आव्या त्यारे तेमणे आ ! वृत्तिमां भेद कों, एटले हाथमां मुहपत्ति राखीने व्याख्यान वांचतां थया. पू० श्री आत्मारामजी महाराज संवेगी मागमां आव्या त्यारे मुहपत्ति सम्बन्धी पू. पं. रत्नविजयजी गणि साथे चर्चा थतां तेमणे का हतु के-परंपराथी व्याख्यान समये मुहपत्ति बांधवी जोईए, ए वात सत्य छ, परन्तु स्थानकवासी पणामा में आने खंडन कयु छ देथी हुँ अहिं बांधु अने त्यां न बांधु तो माझं अप्रमाणिकपणु ठरे, तेथी हुं बांधी शकतो नथी. आ उपरथी समजवान के व्याख्यानसमये मुहपत्ति बांधवानी प्रवृत्ति परंम्परासिद्ध छे. परपराना लक्षण माटे जुओ चैत्यवंदन महाभाष्यनो पाठ अनायमूला हिंसारहिया सुझाणजणणि य । सूरिपरंपरपत्ता सुतव्व पमाणमायरणा ॥ २५ ॥ शान्ति. चै. म. भा. अर्थ-जे प्रवृत्तिनु' मूल अज्ञात होय एटले आ प्रवृत्ति कोणे चालु करी ए खबर न होय, वळी हिंसा रहित होय, शुभध्यानने उत्पन्न करनारी अने आचार्योनी परंपराथी आवेल होय ते आचरणा एटले प्रवृत्ति सूत्रसमान गणाय. साधुओ व्याख्यानसमये मुहपति बांधे छे भने भणती वखते केम बांधता नथी ? एना खुलासामा अणाववान Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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