Book Title: Parvatithi Kshay Vruddhi Prashnottar Vichar tatha Muhpatti Bandhan Nibandh
Author(s): Hemchandrasuri Acharya
Publisher: Chinubhai Trikamlal Saraf
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गीतार्थपरम्परा
[१५] प्रसिद्ध लाकडानी मुख वस्त्रिका कहेलो छे, जे मुखना श्वासनो रोष करनारी जीवोनी दया निमिते होय छे, जेने माटे तेओ कहें छे के, हे ब्रह्मन् अणु मात्र एटलो अक्षर बोलनारना नाकमांथी नीकळेल एक श्वासवडे सेकडो जीवो हणाय छे, एटले जीवदया निमिते तेओ मुहपत्ति राखे छे, आ वात षड्दर्शन समुच्चयमा गुणरत्नसूरिए लखेल छे षड्दर्शन टीका पत्र ३८ ॥
इ. स. पूर्व चोथा सैकामा भारत पर चडी आवेल बादशाह सिकंदरनो सेनापति निआस पोताना युद्धवृत्तान्तमा लखे छे के 'भारतवासी लोको रुने कूटी कूटीने कागळ बनावतां.' आ उपरथी आपणे त्यां कागळ बनाववानो प्रयोग पण घणो प्राचीन जणाय छे.
प्राचीन भंडारोमा चोथा अने पांचमां सैकानी लखेली प्रतो मळी शके छे एटले साधुओने ताडपत्रनी प्रतो लईने व्याख्यान वांव पडतुं हतुं अने तेने लीधे मुहपत्ति बांधता हता-आ वात तो पाया वगरनी लागे छे; कारण के आपणा देशमां कागळ बनाववानो उद्योग तो इस्वीसन पहेलाथी चालु छे एटले व्याख्यानने लायक कागळ उपर लखेली प्रतो नहोती अने ताडपत्रनी प्रतो बे हाथे पकडीने व्याख्यान वाचवू पडतुं हतु एटलेज मुहपत्ति बांधवानु प्रयोजन हतुं ए कथन निराधार ठरे छे. व्याख्यान योगमुद्रा के प्रवचनमुद्रार आपवानु छे तेथी बे हाथे पाना पकडीने व्याख्यान वांचवानी वात रहेतीज नथी.
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