Book Title: Parvatithi Kshay Vruddhi Prashnottar Vichar tatha Muhpatti Bandhan Nibandh
Author(s): Hemchandrasuri Acharya
Publisher: Chinubhai Trikamlal Saraf

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Page 62
________________ गीतार्थपरम्परा [11] देउल सघले वाजीया, झालरना रणकार । तास शब्द सुणतां थका, रजनी नाठी तिवार ॥२॥ सुलभबोधी जीवडा, मांडे निज खटकर्म । साधुजन मुख मुहपत्ति, बांधी कहे जिनधर्म ॥३॥ जगद्गुरु श्री हीरसूरि महाराज पण व्याख्यानमां मुहपत्ति बांधता हता. आ वात कवि ऋषभदासकृत ' हीरसूरिरास 'मां स्पष्ट छे. efoot एक प्रश्न पूछतो, 'कपडा' क्युं बंधेई ? थूक किताब उपर जई लागे, तेणे बांध्या है एही ॥ २१ ॥ sarat फीर एम पूछतो, थुंक पाक नापाक ? हीर कहे मुखमा तव पाको, नीकले ताम नापाकी ॥ २२ ॥ श्री होरसूरि महाराज खंभातमां हता त्यारे खंभातनो सूबो हबिचलो व्याख्यानमां गयेलो. तेणे पूछयुं. के-तमे मोढा उपर कपडु केम बांध्युं छे ? आचार्य महाराजे जणाव्यं केबोलतां थूक पुस्तक उपर न लागे तेथी कपडु बांध्युं छे. इले फरी पूछ के थूक पाक के नापाक ? त्यारे हीरसूरि महाराज कहे छे के थूक मोढामां होय त्यां सुधी पाक - पवित्र छे. बहार निकल्या पछी नापाक - अपवित्र गणाय अहिं बिबलाना प्रश्नना जवाबमां पुस्तक उपर थूक न लागे ए सिवाय मुहपत्ति बांधवानुं बीजुं कोई कारण जणाव्यं नथी. पुस्तक उपर थूक लागवाथो श्रुतज्ञाननी आशातना थाय छे. $ श्रुतज्ञान' ए ज्ञाननो भेद छे अने ज्ञान ए मोक्षनु अंग छे, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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