Book Title: Parvatithi Kshay Vruddhi Prashnottar Vichar tatha Muhpatti Bandhan Nibandh
Author(s): Hemchandrasuri Acharya
Publisher: Chinubhai Trikamlal Saraf

View full book text
Previous | Next

Page 59
________________ मुहपत्तिबन्धन के व्याख्यान योगमुद्रा अथवा प्रवचनमुद्राए आपवानु छे. वळी अर्थनी देशना आपनार आचार्य तीर्थकर तुल्य गणाय छे. ते माटे व्यवहारभाष्यनो नीचेनो पाठ साक्षीरुप छे. कहंतो गोयमो अत्थं मोत्तु तीत्थगरं सयं । नवि उट्टई अन्नस्स तग्गयं चेव गम्मति ॥ गाथा-२०२, व्यव० ६ उद्देखो. टीका-न खलु भगवान् गौतमो अर्थ कथयन् स्वकमात्मीयं तीर्थकरं मुक्त्वा अन्यस्य कस्यापि उत्तिष्ठति, अभ्युत्थानं कृतवान, तद्गतं चेदानीं सर्वैरपि गम्यते । तदनुष्ठितं सर्वमिदानीमनुष्ठीयते । ततोऽर्थ कथयन् न कस्याप्युत्तिष्ठति ॥ ... अर्थः-अर्थन व्याख्यान करनार भगवान श्री गौतमस्वामी पोताना तीर्थकरने मूकीने बीजा कोई वडील आवे तो उठता नथी, तेम आसनवडे सत्कार पण करता नथी, तेमनुं अनुकरण करीने वर्तमानकाळे अर्थन व्याख्यान करता कोई ऊभा थता नथी, फक्त पोताना गुरु आवे तो जरुर ऊभा थर्बु जोईए. आ उपरथी समजवान के-व्याख्यान आपनार मुनि तीर्थंकर स्थानीय छे. वळी व्याख्यान योगमुद्रा अथवा प्रवचनमुद्राए आपवानुं छे. योगमुद्वा एटले छे बे कोणी पेट उपर राखीने बे हाथ जोडवा ते योगमुद्रा कहेवाय. अने आचारदिनकरमां प्रवचनमुद्राए धर्मदेशना आपवानुं कयुं छे. प्रवचनमुद्रा एटले के जमणा हाथना अंगूठानी साथे तर्जनी आंगळी जोडीने बाकीनी आंगलीओ विस्तारवी ते प्रवचनमुद्रा कहेवाय. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70