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पर्वतिथिक्षयवृद्धिप्रश्नोत्तरविचार लौकिक पंचांग प्रमाणे पर्वतिथिनी वृद्धि माने छे ते सत्य छे ?
उत्तर-लौकिक पंचांग प्रमाणे पर्वतिथिनी वृद्धि मानवाथी आगमनी साथे स्पष्ट विरोध आवे छे. सूर्यप्रज्ञप्ति, चंद्रप्रज्ञप्ति अने ज्योतिषकरंडक सूचना पाठ प्रमाणे तिथिनीज वृद्धि थती नथी तो पछी पर्वतिथिनी वृद्धि केम मनाय ? वळी सत्य तो वे ज कहेवाय केजे जिनेश्वरे कां होय. जुओ भगवतीसूत्रनो पाठ. पत्रांक ५४, श. १, उ. ३ ___ से नूर्ण भंते ! तमेव सच्चं णीसंकं जं जिणेहिं पवेइयं । हंता गौतम ! तमेव सच्चं णीसंकंज जिणेहिं पवेदितं ॥
अर्थ-जिनेश्वरे जे कां छे तेज सत्य अने निःशंक छे ? हा, हे गौतम! जिनेश्वरे जे प्ररुप्युं छे तेज सत्य अने निःशंक छे. अभयदेवसूरि महाराज भगवतीसूत्रनी टीकामां पण एमज कहे छ के-जेमनो मत आगमा नुसारी होय तेज सत्य मानवु; बीजानी उपेक्षा करवी एटले छोडी देवू. जुओ टीकानो पाठ
यदेव मतमागमानुपाति तदेव सत्यमिति मन्तव्यमितरत्पुनरुपेक्षणीयम् ॥ भ. सू. श. १, उ. ३, पत्रांक ६२ टीका. आ उपरथी पर्वतिथिनी लौकिक पंचांग प्रमाणे वृद्धि मानवी ते असत्य छे.
प्रश्न १८–तिथिचर्चाना सामान्य विषयने विद्वान् साधुओ आटलं मोटुं रुप केम आपे छे ?
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