Book Title: Parvatithi Kshay Vruddhi Prashnottar Vichar tatha Muhpatti Bandhan Nibandh
Author(s): Hemchandrasuri Acharya
Publisher: Chinubhai Trikamlal Saraf

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Page 43
________________ पर्वतिथिक्षयवृद्धिप्रश्नोत्तरविचार छे, त्यारे कल्याणक तिथिो अनियत छे एटले एक सरखी होती नथी, बीजु कारण ए के अष्टमी चतुर्दशीना दिवसे साधु तप न करे, सर्व चैत्योने तथा अन्य स्थानमा रहेला साधुओने वंदना न करे तो प्रायश्चित्त आवे एम नव्य यति जीतकल्पमा लख्यु छे पण कल्याणकनी तिथिए तप न करे तो प्रायश्चित्त आवे एवं लख्यु नथी जुओ नव्य यति जीतकल्पनो पाटचउ छह मऽकरणे अट्ठमि पक्ख चाउमास वरिसेसु । लहु गुरु लहुगा गरुगा अवंदणे चेइ साहुणं ॥२३१॥ ___व्याख्या-यथासंख्यं पदयोजना साचैवम् अष्टम्यां चतुर्थस्याकरणे मासलघु (पुरिमुई) चतुर्दश्यां (पाक्षिके प्र.) चतुर्थस्याकरणे मासगुरु (एकाशनक) चतुर्मासिके षष्ठस्याकरणे चत्वारो लघुमासाः (आचाम्ल) सांवत्सरिके अष्टमस्याकरणे चत्वारो गुरुमासाः (उपवासं) तथा एतेषु एष्टम्यादिषु दिवसेषु चैत्यानां जिनबिंबानां अन्यवसतिगत सुसाधूनां चावंदने प्रत्येक लघुमासः (पुरिमुई) ॥२३॥ .. अर्थ-आठमना दिवसे उपवास न करे तो पुरिमडनु प्रायश्चित्त आवे चतुर्दशीना दिवसे उपवास न करे तो एकाशनानो प्रायश्चित्त आवे चउमासीनो छठू न करे तो आंबीलनो प्राय. श्चित्त अने संवच्छरीनो अटुंम न करे तो उपवासन प्रायश्चित्त आवे तथा अष्टमी चतुर्दशी आदि पर्व तिथिओना दिवसे सर्व जिन बिंबोने तथा अन्य स्थानमा रहेला बीजासु साधु भोने वंदना न करे तो दरेकमां पुरिमडनो प्रायश्चित्त आवे एम सोम प्रभसूरि उद्धृत यति जीतकल्पमां का छे तेथी पूर्वाचार्यों बार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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