Book Title: Parvatithi Kshay Vruddhi Prashnottar Vichar tatha Muhpatti Bandhan Nibandh
Author(s): Hemchandrasuri Acharya
Publisher: Chinubhai Trikamlal Saraf

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Page 47
________________ अंगसूत्रोनुं थोडं ज्ञान विच्छेद गयु हतुं. अने थोडं ज्ञान प्राप्त हतुं. ते कषाय पाहुड उपर आचार्यश्री यतिवृषभे विक्रमनी उट्ठी शताब्दिमां चूर्णी रची अने आचार्य श्री वीरसेन तथा जिनसेने विक्रमनी नवमो शताब्दिमां जय धवला टीका रची. सूत्रो जो विच्छेद गया होय तो तेनुं ज्ञान पण विच्छेद जाय. विच्छेद जवु एटले भूलाई जवं. कारण सूत्रो मोढे हता. अने पछी याद रहेला ज्ञानमां मति विभ्रमथी अयथार्थता आवी गई होय. सूत्रो विच्छेद गया पछी पण सूत्रनुं ज्ञान यथार्थ रहे छे. एम दिगंबरो कहे तो ते हिसाबे श्वेतांबगे पासे रहेला सूत्रोमां पण यथार्थ ज्ञान छ एम तेमणे कबुल करवू जोईए. कारण के नहितर कषाय पाहुडनी टीका अयथार्थ ज्ञानमाथी निष्पन्न थई छे एम मानवू पडे. परन्तु अहिया तो ठेठ विक्रमनी नवमी सदीमा आचार्य श्री वीरसेन तथा जिनसेने मळीने साठ हजार श्लोक प्रमाण जयधवला नामनी मोटी टीका रची छे. अने तेने प्रमाण आगम तरीके मान्य गणवामां आवे छे. आ उपरथी मानवू ज पडशे के पूर्व तथा अंगसूत्रोर्नु एकदेशीय ज्ञान ठेठ विक्रमनी नवमी शताब्दि सुधी प्राप्त हतु. एटले के सूत्रो संपूर्ण विच्छेद नहोता गया पण तेनो केटलोक भाग विच्छेद गयो हतो, अने बाकीनो भाग मोजुद हतो. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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