Book Title: Parvatithi Kshay Vruddhi Prashnottar Vichar tatha Muhpatti Bandhan Nibandh
Author(s): Hemchandrasuri Acharya
Publisher: Chinubhai Trikamlal Saraf

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Page 46
________________ दिगंबरो विषे जाणवाजोग सूत्रो सदंतर विच्छेद गयानी दिगंबरोनी मान्यता साची नथी. दिगंबरो अंग सूत्रोने वीर संबत ६८३ सुधीमां एटले के विक्रमनी बीजी शताब्दिनी शरुआतमां ज तद्दन विच्छेद गया एम माने छे तेथी तेओ श्वेतांबरोमान्य सूत्रोनो स्वीकार करता नथी. त्यारे कषाय पाहुड श्री गुणधराचार्ये विक्रमनी बीजी शताब्दिमां रच्यु हतुं तेनुं विवेचन करतां लखे छे के 'वीर संवत ६८३ बाद अंगो अने पूर्वोतुं एक देश (एटले अधुरु ) ज्ञानज पर पराथी श्री गुणधराचार्यने प्राप्त थयु अने ते भट्टारक गुणधराचार्ये जे ज्ञानप्रवाद नामनां पावमा पूर्वनी दशमी वस्तुनी अंतर्गत त्रौंजा कषाय पाहुड अधिकारनां पारंगत हता. तेमणे प्रव वन वात्सल्यथी वशीभूत थईने ग्रंथ विच्छेद थवाना भयथी सोळ हजार पद प्रमाणे पेज्जदोस पाहुडानो १८० गाथाओ द्वारा उपसंहार कर्यो.' ( जय धवला पु. १ पार्नु ४१) एटले के वीर संवत ६८३ (विक्रमनी बीजी शताब्दिमां अंगसूत्रो संपूर्ण विच्छेद गया नहोता पण पूर्वी सहित सर्व Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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