Book Title: Parvatithi Kshay Vruddhi Prashnottar Vichar tatha Muhpatti Bandhan Nibandh
Author(s): Hemchandrasuri Acharya
Publisher: Chinubhai Trikamlal Saraf

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Page 36
________________ पर्वतिथिक्षयवृद्धिप्रश्नोसरविचार पण गीतार्थों 'आ अयुक्त छे' एम कहे नहि तो पछी सूत्र, ग्रंथ अने पूर्वाचार्योनी परंपरासिद्ध तेमज कई सदीओथी चाली आवती पर्वतिथिनी क्षय के वृद्धिमा कराती अपर्वतिथिनी क्षय वृद्धिनी आचरणाने केम तोडी शकाय ? जे भवभीरु गीतार्थों होय ते तो आनुं खंडन करेज नहि. प्रश्न २०-कोई माणस आखं सूत्र माने पण ते सूत्रना एक पद के अक्षरने न माने तो तेने सम्यगदृष्टि कहेवो के मिथ्यादृष्टि ? उत्तर-कोई आ सूत्र माने पण ते सूत्रना एक पद के अक्षरने न माने तो ते जमालिनी माफक मिथ्या दृष्टि कहेवाय. ते माटे जुओ विशेषावश्यक भाष्यनो पाठ पयमक्खरंपि इक्कं च जो न रोएइ सुत्तनिद्दिढें ॥ सेसं रोअंतो वि हु मिच्छदिट्ठी जमालिव्व ॥१॥ अर्थ-जे माणसने सूत्रमा कहेल एक पद के अक्षर न रुचे अने बाकीन आखु सूत्र रुचे एटले माने तो पण जमालिनी माफक तेने मिथ्यादृष्टि जाणवो, सम्यक्त्व होय नहि प्रश्न--२१ नवा पंथवाळा पोताना पंचांगोमां पर्वतिथिना क्षयमां उदय न मळे तो समाप्ति जरुर लेवानुं लखे छे ते योग्य छे ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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