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पर्वतिथिक्षयवृद्धिप्रश्नोत्तरविचार
___उत्तर-आराधनामां उदय न मळे तो समाप्ति लेवी आ अन्य गच्छनो मत छे. श्राद्धविधिकार तो आराधनामां
औदयिक तिथि ज मानवान कहे छे; पण समाप्तिनी निर्देश करता नयी उदयंमि जा तिही सा पमाणं पत्यादि एटला माटे ज पर्वतिथिना क्षये तेना पूर्वनी तिथिमां आराध्य औदयिक तिथि स्थापीने अपर्वतिथिनो क्षय मानवामां आवे छे.
प्रश्न २२--नवा पंथवाळा पर्वतिथिनी वृद्धि कहे छे छे ते शु उत्सूत्र छ ?
उत्तर--जैनागम प्रमाणे तिथिनी वृद्धि ज थती नथी एम नवा पंथवाळा जाणे छे, छतां पर्वतिथिनी वृद्धि थाय एम कहे तो ते चोकखी उत्सूत्रप्ररुपणाज छे.
प्रश्न २३-- उत्सूत्र प्ररुपणा करनारना दर्शनथी सम्यगू दृष्टि जीवने लाभ के हानि ?
__उत्तर--उत्सूत्रप्ररुपणा करनारनुं दर्शन पण संसारवर्धक कह्यु छे, ते माटे जुओ कल्पभाष्यनो पाठ-- ___ उस्सुत्तभासगा जे ते दुक्करकारगा वि सच्छंदा ॥ ताण न दसणं पि हु कप्पइ कप्पे जओ मणियं ॥१॥ जे जिणवयणुतिण्णणं वयणं भासंति अहव मन्नंति ॥ सम्मदिट्ठीणं तइंसण पि संसारखुढिकरं ॥२॥
अर्थ-जे उत्सूत्र बोले छ ते दुष्कर क्रिया करता होय तो पण तेमने सूत्रकार स्वच्छंदी कहे छे. तेमनुं दर्शन कर,
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