Book Title: Parvatithi Kshay Vruddhi Prashnottar Vichar tatha Muhpatti Bandhan Nibandh
Author(s): Hemchandrasuri Acharya
Publisher: Chinubhai Trikamlal Saraf

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Page 38
________________ पर्वतिथिक्षयवृद्धिप्रश्नोत्तर विचार पण कल्पे नहि जे कारणथी कल्पभाष्यमां कधुं छे, (१) जेओ जिनेश्वरना वचनथी विरुद्ध वचन बोले छे अथवा ते प्रमाणे माने छे तेमनुं दर्शन पण सम्यग्दृष्टि जीवने संसारवर्धक छे. आ उपरथी वाचको समजी शकशे के उत्सूत्रप्ररूपणा करनार पोते संसारसमुद्रमां डूबे छे अने आश्रितोने पण डूबाडे छे, प्रश्न २४ – एक जीव ज्ञान अने क्रियामां शिथिल छे. परंतु प्ररूपणा शुद्ध करे छे अने बीजो ज्ञान अने क्रियामां अप्रमत्त छे, त्यागी छे पण जाणीजोईने उत्सूत्रप्ररूपणा करे छे तो आ बेमां श्रेष्ट कोण गणाय ? उत्तर - हितोपदेशमाला ग्रंथना अभिप्राय प्रभाणे तो शुद्ध प्ररुपक ज श्रेष्ट गणाथ, केमके शिथिलाचारथी पोते डूबे छे पण बीजाने डूबाडतो नथी त्यारे त्यागी उत्सूत्र प्ररुपक तो स्वपरने डूबाडे छे. वे माटे जुओ पूर्वाचार्यप्रणीत हितोपदेशमालानो पाठ नाणा किरियासु सिटिला अप्पाणं चिय भवंमि पाडंति ।। विता परूवणा पुण अणतसत्ते भमाडंति || ४७४ ॥ अर्थ - ज्ञान अने क्रियामां शिथिल एवो पोताना आत्माने ज संसारसमुद्रमां संसारसमुद्रमां पाडे छे, परंतु बीजाओने डूबाडतो नथी त्यारे उत्सूत्रपरुपणा करनारा त्यागीओ तो पोते भवसमुद्रमां परिभ्रमण करे छे अने उपदेशथी बीजा अनंत जीवोने भवभ्रमण करावे छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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