Book Title: Parvatithi Kshay Vruddhi Prashnottar Vichar tatha Muhpatti Bandhan Nibandh
Author(s): Hemchandrasuri Acharya
Publisher: Chinubhai Trikamlal Saraf

View full book text
Previous | Next

Page 30
________________ पर्वतिथिक्षयद्धिप्रश्नोत्तरविचार खाणं पडिक्कमणं तहय निअमगहणं च ॥ जीए उदेइ मूरो, तीइ तिहीए उ कायव्वं ॥२॥ अर्थ-चातुर्मासिक, सांवत्सरिक, पाक्षिक पंचमी, अष्टमीने माटे ते तिथिओ लेवी के जेमां सूर्य उदय पामे; बीजी अनौदयिक तिथिओ न लेवी. जे तिथिमा सूर्य उदय पामे ते लिथिने विषे पूजा, पच्चकखाण, प्रतिक्रमण अने नियम ग्रहण करवा. आ उपरथी एम सिद्ध थाय छे के पर्वतिथिनी आराधनामां अनौदयिक तिथि लेवाती नथी तेथी नवा पंथवाळा पर्वतिथिनो क्षय मानीने अपर्वतिथिनीज आराधना करे छे. पर्वतिथिनो क्षय कायम राखीने ते पर्वनी आराधना करवी. आ मान्यता वेदिक धर्मवालानी छे जैनोनी नथी. - प्रश्न १६-पूर्णिमाना क्षये चौदश-पूनम भेगी मान नारा पाक्षिक प्रतिक्रमण क्यारे करे ? - उत्तर-नवा पंथवाळा पूर्णिमाना क्षये चौदश-पुनम भेगी माने छे तेथी पाक्षिक प्रतिक्रमण तेमणे सवार ज करवु जोईए केमके टिप्पणामां चौदशनो भाग सबारमा ज होय छे. बपोरना तो पूर्णिमा शरु थई जाय छ, तेथी सांजना पाक्षिक प्रतिक्रमण थई शके नहि केमके पाक्षिक प्रतिक्रमण चौदशर्नु छे; पूनमर्नु नथी छतां सांजना करे तो ते पाक्षिय प्रतिक्रमण पूनमर्नु ज कहेवाय पण बौदशर्नु नहि, तेमनी आ मान्यता पण शास्त्रविरुद्ध छे. प्रश्न १७-नवापंथवाळा सैद्धान्तिक टिप्पणना अभावे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70