SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 31
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २२ पर्वतिथिक्षयवृद्धिप्रश्नोत्तरविचार लौकिक पंचांग प्रमाणे पर्वतिथिनी वृद्धि माने छे ते सत्य छे ? उत्तर-लौकिक पंचांग प्रमाणे पर्वतिथिनी वृद्धि मानवाथी आगमनी साथे स्पष्ट विरोध आवे छे. सूर्यप्रज्ञप्ति, चंद्रप्रज्ञप्ति अने ज्योतिषकरंडक सूचना पाठ प्रमाणे तिथिनीज वृद्धि थती नथी तो पछी पर्वतिथिनी वृद्धि केम मनाय ? वळी सत्य तो वे ज कहेवाय केजे जिनेश्वरे कां होय. जुओ भगवतीसूत्रनो पाठ. पत्रांक ५४, श. १, उ. ३ ___ से नूर्ण भंते ! तमेव सच्चं णीसंकं जं जिणेहिं पवेइयं । हंता गौतम ! तमेव सच्चं णीसंकंज जिणेहिं पवेदितं ॥ अर्थ-जिनेश्वरे जे कां छे तेज सत्य अने निःशंक छे ? हा, हे गौतम! जिनेश्वरे जे प्ररुप्युं छे तेज सत्य अने निःशंक छे. अभयदेवसूरि महाराज भगवतीसूत्रनी टीकामां पण एमज कहे छ के-जेमनो मत आगमा नुसारी होय तेज सत्य मानवु; बीजानी उपेक्षा करवी एटले छोडी देवू. जुओ टीकानो पाठ यदेव मतमागमानुपाति तदेव सत्यमिति मन्तव्यमितरत्पुनरुपेक्षणीयम् ॥ भ. सू. श. १, उ. ३, पत्रांक ६२ टीका. आ उपरथी पर्वतिथिनी लौकिक पंचांग प्रमाणे वृद्धि मानवी ते असत्य छे. प्रश्न १८–तिथिचर्चाना सामान्य विषयने विद्वान् साधुओ आटलं मोटुं रुप केम आपे छे ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001774
Book TitleParvatithi Kshay Vruddhi Prashnottar Vichar tatha Muhpatti Bandhan Nibandh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemchandrasuri Acharya
PublisherChinubhai Trikamlal Saraf
Publication Year1962
Total Pages70
LanguageGujarati, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Gujarati, Tithi, & Religion
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy