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________________ पर्वतिथिक्षयवृद्धिप्रश्नोत्तरविचार __ उत्तर-आ चर्चा पर्वतिथिना क्षय वृद्धि विषयक छे. पर्वतिथिनी साची आराधना आत्मकल्याणनो अनुपम मार्ग होवाथी विद्वान् साधुओने ते महत्वनो विषय लागे छे. ते माटे जुओ श्रा विधिमां आपेल आगमनो पाठ, पत्रांक १५३___ भयवं बीअपमुहासु पंचसु तिहीसु विहिअं धम्माणुट्ठाणं किं फलं होइ ? प्रश्न. उत्तर-गोयमा! बहुफलं होइ । जम्हा एआसु तिहीसु पाएणं जीवो परभवाउअं समज्जिणइ, तम्हा तको विहाणाइ धम्माणुठाणं कायव्वं, जम्हा सुहाउअंसमञ्जिणइत्ति।" आयुषि बध्धे तु दृढधर्माराधनेऽपि बद्धायुनं टलति ॥ अथ-हे भगवान् ! बीज प्रमुख पांच तिथिने विषे करेल धर्मानुष्ठाननु शु फल थाय ? उत्तर-हे गौतम ! घणु फल थाय, कारण के आ तिथिओने विषे प्रायः घणु करीने जीव परभवन आयुष्य बांधे छे, तेथी तपोविघानादि धर्मानुष्टान अवश्य कर जेथी शुभ आयुष्य. बंधाय. अशुभ आयुष्य बंधाया पछी मजबूत रोते धर्मनी आराधना करे तो पण बांधेल आयुष्य त्रुटतुं नथी. उपर आपेल भगवतीसूत्रना पाठ उपरथी वांचकवर्गने समजाशे के पर्वतिथिनी चर्चा केटलो महत्वनो विषय छे. - प्रश्न १९-जेने माटे आगममां विधि के प्रतिषेध न होय अने जे परंपरा कई सदीओथी चालती होय ते परंपराने गीतार्थों पोतानी मतिकल्पनाथी दूषित करे ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001774
Book TitleParvatithi Kshay Vruddhi Prashnottar Vichar tatha Muhpatti Bandhan Nibandh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemchandrasuri Acharya
PublisherChinubhai Trikamlal Saraf
Publication Year1962
Total Pages70
LanguageGujarati, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Gujarati, Tithi, & Religion
File Size3 MB
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