Book Title: Parvatithi Kshay Vruddhi Prashnottar Vichar tatha Muhpatti Bandhan Nibandh
Author(s): Hemchandrasuri Acharya
Publisher: Chinubhai Trikamlal Saraf

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Page 19
________________ १० पर्वतिथिक्षयवृद्धिप्रश्नोत्तरविचार पंचमी तिथिस्त्रुटिता भवति तदा तत्तपः पूर्वस्यां तिथौ क्रियते पूर्णिमायां च त्रुटितायां त्रयोदशीचतुर्दश्योः क्रियते, त्रयोदश्यां विस्मृतौ तु प्रतिपद्यपीति ॥ अर्थ-ज्यारे पंचमीनो क्षय होय त्यारे ते पंचमी तिथिनो तप लौकिक पंचांगनी कई तिथिए अने पूर्णिमानो क्षय होय त्यारे ते तप कई तिथिए करवो ? एनो उत्तर आपे छे-टिप्पणमां पंचमीनो क्षय होय त्यारे ते पंचमीनो तप पहैलानी तिथि चोथना दिवसे करवो, अने पूर्णिमानो तप तेरस चौदशे करवो, अहिं खास आचार्य श्रीए सप्तमी विभतिर्नु द्विवचन वापर्यु छे ए अर्थ सूचक छे, एटले टिप्पणानी त्रयोदशीए औदयिक चतुर्दशी स्थापीने पाक्षिक कृत्य करवू अने चतुर्दशीए पूर्णिमा स्थापीने ते तपनी आराधना करवी एथी पूर्णिमाना क्षयमां बे तिथि फेरववान सूचवे छे एटले पंचांगनी पूर्णिमा अने अमावास्याना क्षयमां तेरशनो क्ष्य करवो ए प्रमाणे तेरशे करवान भूली गया होय तो पडवानो दिवसे पण पूणिमानो तप करवो. आ — अपि' शब्दनो अर्थ छे. जेम पांचमना आये ते तप चोथे करी शकाय छे, केमके चोथ अपर्वतिथि छे परन्तु पूर्णिमाना क्षये ते तप चौदशे करी, शकातो नथी, केमके भगवतीसूत्रमा चौदश अने पूर्णिमाने प्रधान पर्वतिथि मानेल तेथी ए बन्ने पर्वनी आराधना जुदी ज करवी जोइए, भयमां भेगी थई शके नहि. जो पूर्णिमाना क्षये ते तप तेरश के प्रतिपदाए ज करवानो होय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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